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Manan Kumar singh's Blog – March 2018 Archive (2)

बेवफा वे अब कहाँ(गजल)

2122   2122   2122

बेवफा वे अब कहाँ,अपने हुए हैं

वर्जनाएँ तोड़कर आगे बढ़े हैं।1

दो कदम उनके हुए तो कम नहीं हम

कुछ कदम चलकर मुरव्वत से मिले हैं।2

गालियाँ उनकी नहीं लगतीं बुरी अब

लफ्ज उनके चासनी में ज्यों सने हैं।3

दोस्ती का सिलसिला चलता रहेगा

लोग वैसे कह रहे,चिकने घड़े हैं।4

डर सताता हार जाने का हमेशा

इस कदर ही मोहरे कि त ने लुटे हैं।5

फूलती-फलती रहे अपनी तिजारत

नाव जिनकी डूबती वे आ…

Continue

Added by Manan Kumar singh on March 13, 2018 at 9:30pm — 3 Comments

शरणार्थी(लघुकथा)

दो मित्र आपस में बातें कर रहे थे;एक मानवतावादी था और दूसरा समाजवादी।पहले ने कहा-
अरे भई!वो भी आदमी हैं,परिस्थिति के मारे हुए।बेचारों को शरण देना पुण्य-परमार्थ का काम है।
दूसरा:हाँ तभी तक,जबतक यहाँ के लोगों को शरणार्थी बनने की नौबत न आ जाये।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on March 7, 2018 at 8:25pm — 8 Comments

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