फिर चल पड़ी है
दिन मे तेज अंधड़
चिलचिलाती धूप
और उसमे गुलमोहर के फूल
लंबी सड़कों के दोनों और
इकठ्ठा होता पत्तियों का मलबा
और हवा से उड़ते हुये
उनका सरसराना ....
पलाश का फूल भी खिल रहा है
ओ-हो मौसम बदल रहा है ....
सुनो ...
मेरी यादों की रजईयों
को थोड़ी धूप दिखा देना
और फिर सहेज कर रख देना
जब ठंड आएगी
रिश्तों की गर्माहट के लिए
निकाल लेना फिर से .... रज़ाई
लक्ष्मण…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on March 11, 2015 at 9:07pm — 9 Comments
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