दूर से ढोल मजीरे की ताल पर हुरियारों की आवाज आ रही थी – ‘अवध माँ राना भयो मरदाना कि हाँ--- हाँ -----राना भयो मरदाना ‘
हाथ में पिचकारी लिए एक युवक ने किसी वृद्ध से पूंछा – ये राना कौन है ? कौनो बड़े हुरियार थे का जो इनके नाम की होरी गाई जा रही है.’
बुजुर्ग ने आश्चर्य से युवक की और देखा और कहा –‘तुम का पढ़े हो, तुम्हे अपने बैसवारे का इतिहास भी नहीं मालूम. अरे राना यहीं शंकरपुर के ताल्लुकेदार थे, जिन्होंने सन सत्तावन की क्रान्ति में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और आखिर तक…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 14, 2017 at 9:12pm — No Comments
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