बह्र = 121 2122 2122 222
हर एक आदमी इंसान सा क्यूँ लगता है
खुदा तेरा मुझे भगवान् सा क्यूँ लगता है
हज़ारो लोग दौड़े आते हैं मंदिर मस्जिद
मुझे खुदा ही परेशान सा क्यूँ लगता है
कि सारी जिंदगी नाजों से था पाला जिसने
वो बूढ़ा बाप भी सामान सा क्यूँ लगता है
सियासी कूचों से होकर के गुजरने वाला
हर एक शख्स बे ईमान सा क्यूँ लगता है
इबादतों का कोई वक्त जो बांटूं भी तो
हर एक माह ही रमजान सा क्यूँ लगता है …
Added by Anurag Singh "rishi" on April 21, 2014 at 12:30pm — 26 Comments
पत्थर बना रहा सदा पत्थर बना रहा
ग़ज़लों में रोये ज़ार हम वो अनसुना रहा
दुनिया है हुक्मरान की क़ानून हैं बड़े
लाखों किये जतन मगर ये बचपना रहा
रातो में नीद भी नही दिन में नही सुकूं
सब कुछ रहा अजीब सा जब तुम बिना रहा
मंजिल से दूर रोकने क्या क्या नही हुआ
रस्ते भुलाने के लिए कुहरा घना रहा
सोचा बुला दूँ जो तुझे जाएगी मेरी जान
जीता रहा जरूर मै पर तडपना रहा
अनुराग सिंह “ऋषी”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Anurag Singh "rishi" on April 13, 2014 at 1:00pm — 19 Comments
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