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गज़ल - "हक जताता है"

कभी सपने सज़ाता है कभी आंसू बहाता है
खुदा दिल चीज़ कैसी है जो पल में टूट जाता है

ये उठते को गिराता है व गिरते को उठाता है
अरे ये वक्त ही तो है सदा हमको सिखाता है

मेरी ज़र्रा नवाज़ी को न कमज़ोरी समझना तुम
अदाकारी परखने का हुनर हमको भी आता है

जो ज़ेरेख्वाब ही मदमस्त हो अपने लिए जीता
ये आदमजात है भगवान को भी भूल जाता है

मै रोऊँ या हंसूं मंज़ूर पर उसको ही लेकर के
भला क्यों आज भी हम पर वो इतना हक जताता है

अदा-ए-दिल्लगी उसकी “ऋषी” दिल जीत लेती है
मुझे ही सामने कर जब मेरी गज़लें सुनाता है 

अनुराग सिंह “ऋषी”

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by वेदिका on July 20, 2013 at 4:25pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद कुबूल करें!

आदरणीय अनुराग ऋषि जी! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 20, 2013 at 3:13pm

हार्दिक धन्यवाद कि आपने प्रदत्त सुझाव के अनुरूप ग़ज़ल के अशार के क्रम में सुधार क लिया.  लेकिन लगता है आपको मेरे अन्य कहे पर अभी पूर्ण भरोसा नहीं है.

शुभ-शुभ

Comment by Anurag Singh "rishi" on July 20, 2013 at 12:48am

परम आदरणीय सौरभ सर आपके मूल्यवान सुझावों हेतु आपका आभारी हूँ मेरे जैसे अल्पज्ञ को आप ऐसे ही रास्ता दिखाते रहेन यही कामना करता हूँ साथ ही आशा भी
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on July 20, 2013 at 12:44am

सर्व प्रथम आभार आप दोनों का डॉ. प्राची जी एवं वंदना जी ह्रदय से शुक्रिया आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया हेतु


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 3:37pm

भाई अनुराग जी, आपकी ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद.

आपकी इस प्रस्तुति से मन खुश हुआ लेकिन ग़ज़ल के मूल पहलुओं के प्रति आप तनिक सचेत हों तो मज़ा दूना हो जाये.

ये उठते को गिराता है व गिरते को उठाता है
अरे ये वक्त ही तो है सदा हमको सिखाता है.. .

इस शेर को मत्ले के ठीक बाद रखा होता आपने तो यह हुस्नेमतला कहलाता. लेकिन यहाँ यह तक़ाबु्ले रदीफ़ के ऐब का वाहक है. इस शेर को सही जगह कर दें.

मै रोऊँ या हंसूं मंज़ूर पर उसको ही लेकर के.. . इस मिसरे में लेकर के साथ के भर्ती का है.  ह गलत प्रयोग ग़ज़ल के लिहाज़ से त्याज्य है. 

मक्ते में भी तकाबुलेरदीफ़ का दोष बन रहा है. देख लीजियेगा. साथ ही, कर के प्रयोग थोड़ा कचकता हुआ तो है ही.

ये मेरे कुछ सुझाव हैं जो प्रथम दृष्ट्या प्रतीत हुए हैं.

शुभेच्छाएँ.

Comment by vandana on July 16, 2013 at 7:11am

bahut sundar gazal !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 10:06am

बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है आ० अनुराग सिंह जी 

बहुत कोमल एकसासों को सहेजा है इसमें 

बहुतबहुत बधाई 

Comment by Anurag Singh "rishi" on July 15, 2013 at 9:19am

आदरणीय मोहन जी और अरुन कुमार जी आप के हौसला अफजाई के  लिए बहुत बहुत शुक्रिया ऐसे ही स्नेह बनाए रखें
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on July 15, 2013 at 9:12am

आदरणीय श्याम नारायण जी ह्रदय से आभारी हूँ आपका

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 15, 2013 at 8:58am

कभी सपने सज़ाता है कभी आंसू बहाता है
खुदा दिल चीज़ कैसी है जो पल में टूट जाता है

अनुराग सिंह “ऋषी” जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई .......

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