इधर-उधर की न कर, बात दिल की कर साक़ी
सुहानी रात हुआ करती मुख़्तसर साक़ी ||
खिला-खिला है हर इक फूल दिल के सहरा में
तुम्हारे इश्क़ का कुछ यूँ हुआ असर साक़ी ||
अजीब दर्दे-मुहब्बत है ये शकर जैसा
जले-बुझे जो सितारों सा रातभर साक़ी ||
उतार फेंक हया शर्म के सभी गहने
कि रिस न जाए ये शब, हो न फिर सहर साक़ी ||
है बरकरार तेरा लम्स* मेरे होंठों पर
कि जैसे ओंस की इक बूँद फूल पर साक़ी ||
ख़ुदा से और न दरख़ास्त एक…
ContinueAdded by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 30, 2014 at 11:00pm — 21 Comments
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