कौन आँसू पोंछे , कौन सान्त्वना दे ?
स्वजन की मौत पर अकेले ही रोए हैं
आतंकी कोरोना के, मुश्किल हालातों में
स्वयं सांत्वना दी , स्वयं नेत्रनीर धोए हैं
ना ही चेहरा देखा , ना मरघट जा पाए
कैसी विडम्बना ; जो मन को झुलसाए
संचित स्मृतियों को , प्रेमपूर्ण भाव में
सजा लिया है अपने अन्तर के गाँव में
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 28, 2021 at 4:00pm — No Comments
आशाओं , आकांक्षाओं की
जीवन की और प्रतिभाओं की
इस लोकतन्त्र के मन्दिर में
बलि नित्य चढ़ाई जाती है
कोरोना की महमारी में
त्रासद स्थिति, लाचारी में
लाशों पर राजनीति करके
जनता भरमाई जाती है
जिस समय मुसीबत ने घेरा
चँहु ओर काल का है डेरा
वीभत्स घड़ी में आन्दोलन
रैली करवाई जाती है
नज़रें गड़ाए सब वोटों पर
टिकती निगाह बस नोटों पर
शासन में भागीदारी की
कामना जगाई जाती…
ContinueAdded by Usha Awasthi on April 24, 2021 at 9:47am — 4 Comments
कैसी फ़ितरत के लोग होते हैं ?
दूसरे की आँखों में धूल झोंकने हेतु
नम्बर वही मोबाइल पर
नाम कुछ और जोड़ लेते हैं
दुर्जनों के दुर्वचन
सहिष्णुता की परख होते हैं
अपनी नहीं खुद उनकी
औक़ात बता देते हैं
उनकी माँ नहीं थीं, मेरे पिता
वे मुझमें माँ ढूँढते रहे,मैं उनमें पिता
उन्हे ना माँ मिलीं, ना मुझे पिता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 16, 2021 at 10:43am — 4 Comments
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