मेरे अंजुमन में रौनकें बेशक़ कम होंगी ज़रूर
क्या सोच के दोज़ख़ की तरफ़ चल दिए हज़ूर
आपने तो एक बार भी मुड़के देखा नहीं हमें
न जानें था किस बात का अपने आपपे गरूर
यह वक़्त किसी के लिए रुक जाएगा यहाँ
निकाल देना चाहिए सबको दिमाग़ से यह फ़ितूर
चढ़ जाए एक बार तो हर्गिज़ उतरता ही नहीं
क़लम का हो शराब का हो या शबाब का हो सरूर
मासूम से थे हम 'दीपक' शायर 'कुल्लुवी'हो गए
हमसे क्या आप खुद से भी हो गए बहुत दूर
दीपक…
ContinueAdded by Deepak Sharma Kuluvi on April 17, 2014 at 11:30am — 12 Comments
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