आहट .....
दिल
हर आहट को
पहचानता है
आहट
बेशक्ल नहीं होती
होती हैं उसमें
हज़ारों ख़्वाहिशें
जिनके इंतज़ार में
ज़िंदगी
रहती है ज़िंदा
फ़ना होने के बाद भी
सहर होती है साँझ होती है
वक़्त मगर
ठहरा ही रहता है
किसी आहट के इंतज़ार में
नज़रें
अपनी ख़्वाहिशों के अक़्स
देखने को बेताब रहती हैं
तसव्वुर में
ज़िंदा रहती हैं
आहटें
मगर
मिलता है धोख़ा
सायों…
Added by Sushil Sarna on April 29, 2020 at 8:04pm — 6 Comments
झूठ
नहीं, नहीं
रहने दो
सच और झूठ की ये तकरार
सच में बेकार है
सत्य
जब उजागर होता है
तो आघात देता है
और झूठ जब उजागर होता है
तो शर्मिंदगी का शूल देता है
फिर क्यूँ मुझे
अपने सच और झूठ का स्पष्टीकरण देते हो
सच कहूँ
यदि आघात ही सहना है तो
मुझे ये झूठ अच्छा लगता है
कम से कम मौन पलों में
स्नेह का आवरण तो नहीं हटता
कोई स्वप्न मेघ तो नहीं फटता
स्पर्शों की आँधी
सत्य के चौखट पर…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 9:00pm — 4 Comments
दिल के दोहे :
पागल मन की मर्ज़ियाँ, उत्पाती उन्माद।
हुए अलंकृत स्वप्न से, नैनों के प्रासाद।।
वंचक नैनों का भला , कौन करे विश्वास।
इनके हर अनुरोध में, छलके तन की प्यास।।
नैनों के अनुरोध को, नैन करें स्वीकार।
लगती है इस खेल में, दिल को अच्छी हार।।
हृदय कुंज में अवतरित, हुई पिया की याद।
नैन तीर को कर गई, अश्कों से आबाद।।
तृषा हुई बैरागिनी, द्रवित हुए शृंगार।
हौले-हौले दिन ढला, रैन बनी…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 7:10pm — 8 Comments
कोरोना के चक्र की, बड़ी वक्र है चाल।
लापरवाही से बने, साँसों का ये काल।।
निज सदन को मानिए, अपनी जीवन ढाल।
घर से बाहर है खड़ा ,संकट बड़ा विशाल।।
मिलकर देनी है हमें, कोरोना को मात।
काल विभूषित रात की, करनी है प्रभात।।
निज स्वार्थ को छोड़कर, करते जो उपकार।
कोरोना की जंग के ,वो सच्चे किरदार।।
हाथ जोड़ कर दूर से, कीजिये नमस्कार।
हर किसी पर आपका, होगा ये उपकार।।
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on April 9, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
क्षणिकाएँ :
थरथराता रहा
एक अश्क
आँखों की मुंडेर पर
खंडित हुए स्पर्शों की
पुनरावृति की
प्रतीक्षा में
बहुत सहेजा
अंतस के बिम्बों को
अंतर् कंदरा में
जाने
किस बिम्ब के प्रहार से
बह निकला
आँखों के
स्मृति कलश से
गुजरे पलों का सैलाब
तुम्हें
पता ही नहीं चला
तुम जन्मों से
कर रहे हो
वरण
सिर्फ़
मृत्यु का
हर कदम से पहले
हर कदम के बाद
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 7, 2020 at 7:23pm — 1 Comment
मीठे दोहे :
चौखट से बाहर नहीं, रखना अपने पाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।
मीठे रिश्तों की यहाँ, मीठी लगती छाँव।।
मीठे रिश्तों की यहां,मीठी लगती छाँव।
बार-बार मिलती नहीं,ऐसी मीठी ठाँव।।
बार बार मिलती नहीं, ऐसी मीठी ठाँव।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना…
Added by Sushil Sarna on April 4, 2020 at 4:54pm — 4 Comments
समय :
न जाने किस अँधेरे की जेब में
सिमट जाता है समय
न जाने कब उजालों के शिखर पर
कहकहे लगाता है समय
अंतहीन होती है समय की सड़क
बिना पैरों का ये पथिक
अपने काँधों पर ढोता है सदा
कल, आज और कल की परतों में
साँस लेते लम्हों की अनगिनित दास्तानें
और नुकीली सुईयों के पाँव के नीचे रौंदे गए
आफ़ताबी अरमानों के बेनूर आसमान
क्षणों की माल धारण किये
उन्नत भाल का ये आहटहीन अश्व
सृष्टि चक्र का वो वाहक है…
Added by Sushil Sarna on April 3, 2020 at 3:00pm — 4 Comments
क्षणिकाएँ :
क्या ख़बर
हम फिर
मिलें न मिलें
मगर
छोड़ जाऊँगा मैं
समय के भाल पर
हमारे मिलन की गवाह
परछाईयाँ
काँपते चाँद की
.............................
झुलसे हुए होठों पर
रुक गया
फिसल कर
एक अश्क
बेवफ़ाई का
....................
खाली घड़ा
सूखी रोटी
टूटे छप्परों से झाँकती
झूठी आस की
धवल चाँदनी
सुशील सरना /2.4.20
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 2, 2020 at 5:20pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on April 1, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
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