रट्टू तोते की तरह, क्यों रटते दिन रात
दादा जी का नाम भी, गूगल पर मिलि जात
त्रेता के सज्जन कहैं, सबके दाता राम
कलियुग के ढोंगी कहैं, हमरे आशाराम
दिन भर आगे सेठ के, डरि के दुम्म हिलायँ
साँझ ढले पव्वा लगै, अउर शेर हुइ जायँ
हफ्ते में तो चार दिन, काटैं मदिरा माँस
बाकी के कुल तीन दिन, धरम करम उपवास
अबला से सबला हुई, नाच नचावैं आज
बाबू जी की खोपड़ी, बजा रहीं ज्यों साज
गुरु से चेला बीस अब, देय रहा है…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on April 9, 2014 at 10:59pm — 18 Comments
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