पत्थर को भी फूल सरीखा होना अच्छा लगता है
काँधा अपनेपन का हो तो रोना अच्छा लगता है।१।
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पहले जगकर रोज भोर में सूरज ताका करते थे
अब आँखों को उसी वक्त में सोना अच्छा लगता है।२।
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छीन लिया है वक्त ने चाहे खेत का जो भी टुकड़ा था
बेटे हलधर के हम जिन को बोना अच्छा लगता है।३।
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घोर तमस के बीच भी जो तब चौपालों में रहते थे
उनको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2020 at 12:31pm — 9 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२
आप कहते आपदा में योजना है
सत्य में हर भ्रष्ट को यह साधना है।१।
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बाढ़ सूखा ऐपिडेमिक या हों दंगे
चील गिद्धों के लिए सद्कामना है।२।
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घोषणाएँ हो रही हैं नित्य जो भी
वह गरीबों के लिए बस व्यंजना है।३।
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बँट रहा है ढब खजाना सत्य है यह
किंतु किसको मिल रहा ये जाँचना है।४।
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हो गई है हर जिले में अब व्यवस्था
शौक से लूटे जिसे भी लूटना …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2020 at 7:00am — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/ २१२२
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लोरी सुना सुलाती रातें कहाँ गयीं अब
बचपन में चहचहाती सुब्हें कहाँ गयीं अब।१।
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दिनभर का खेलना वो हर भूख भूलकर नित
मस्ती भरी गजब की शामें कहाँ गयीं अब।२।
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हर छलकपट से बंचित लड़ना झगड़ना लेकिन
मन से निकलती सच्ची बातें कहाँ गयीं अब।३।
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जिनपर थी झुर्रियाँ ढब हरपल थी कँपकपाती
रखती थी किन्तु थामे बाहें कहाँ गयीं अब।४।
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वो होंट खिल-खिलाते मुरझा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 19, 2020 at 6:52am — 4 Comments
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