पीछे से बुलाते हो |
एक दिन सोचूंगी मैं
कि तुम्हारी ओर लौट जाऊं
तितलियों से आगे
कागज का जहाज
उडाऊं मैं |
अभी हिम्मत है, हौसला है, जोश है
और जिम्मेदारियों का फैला बोझ है
पत्ता पत्ता हरियाली उपजाऊं मैं
इस जंगल से निकलने का मार्ग न पाऊं मैं
तू ही बता ऐसे में कैसे आऊं…
ContinueAdded by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 23, 2013 at 11:00am — 14 Comments
कभी कभी शब्द आकार नहीं लेते
और मैं बह जाती हूँ अक्षरों में
सुनो ध्यान से ये क्या कहते है ?
खामोश हैं ???
नहीं इनमे कलकल का नाद…
ContinueAdded by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 4, 2013 at 8:36pm — 9 Comments
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