मित्रों! आज पहाड़ मे आई इस भीषण त्रासदी के वक्त कुछ बाहरी असमाजिक तत्व (जो कि पल्लेदारी और मजदूरी के लिए यहाँ आयें हैं) अपनी लोभ लिप्सा के लिए बेहद आमानवीय हो गए है. उनका मकसद पैसा जुटाना और फिर यहाँ से भाग कर अपने देश/ गाँव जाना है. ये लोग गिरोह के रूप मे सक्रिय हैं. इनकी वजह से अपने पहाड़ के सीधे साधे लोग बदनाम हो रहे हैं. अभी कुछ नेपाली मजदूर भी पकडे जा जुके हैं जिनके पास सोने की माला और लाखों रूपये मिले. यहाँ तक कि सुना है करोड से ऊपर रुपये भी मिले अब चूँकि हर इस तरफ ITBP और पुलिस उनकी चेकिंग कर रही है तो वो सुदूर हिमालय मे जा छिपे हैं. पहाड़ के उन जगह पर बस रहे लोकल लोग जिनके अपने परिवार के कई लोग आज इस तबाही में खत्म हो चुके हैं, जिनके शव और अपने नहीं मिल रहे, जिनके घर भी उजड़ चुके हैं, रहने का ठिकाना नहीं, उनके खेत और जानवर सब खतम हो चुके हैं, उनकी दुकाने भी टूट चकी है याँ बह चुकी हैं जिनकी बहती टूटती दुकानों को लूट कर ये असमाजिक लोग हर चीज को दुगने दामों मे बेच रहे हैं, क्युकी लोकल आदमी स्वयं पीड़ित है जो या तो अब दुनिया मे रहा नहीं या अपनों की खोज खबर मे भटक रहा है. ऐसे दुःख के समय जब यहाँ का लोकल आदमी हताश है उस वक्त ऐसे असामाजिक तत्वों की वजह से अपने उत्तराखंड के लोगों के बारे मे गलत संदेशा जा रहा है. पिछले तीन दिन से ये बाते जानते हुए भी इसे लिख नहीं पा रही थी कि अगर मैं किसी समुदाय विशेष का नाम लिखूं तो कैसे लिखूं ? पर इतना कह सकती हूँ कि यह उत्तराखंड का आदमी नहीं जो इस तरह की अमानवीय हरकत करे. यहाँ का आदमी सीधा, सरल, आथित्य सत्कार, और दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहने वाला व्यक्ति होता है. यह यहाँ के लोगो की विशेषता है खुद एक बेल खाना छोड़ सक्ते है लेकिन द्वार पर आये व्यक्ति को खाना खिला कर ही भेजते हैं.
ये असमाजिक बाहरी लोग शव से भी सब कुछ चेन घडी रूपये निकाल रहे हैं. लोगो को मदद का भ्रम दे कर लूट कर भाग रहे है. इनकी वजह से पहले से ही चोट खाया पहाड़ का आदमी भी शर्मसार हो रहा है – वह बेचारा इस वक्त स्वयं पीड़ित है .....
फिर भी मैं फक्र से कहूँगी की हमरे युवा ही मदद के लिए आगे नहीं. हमारी गांव की बहनें भी मानवता धर्म का उदाहरण ख रही हैं. वे लोग सब काम काज घर बार छोड़ कर इन दिनों मिल अपने अपने घर से राशन पानी ला रहे हैं. और गाँव की बहने-माताएं मिल कर पीड़ित लोगों के लिए खाना बना रही हैं. कहीं कहीं गाँव वालों ने बारी लगाई है कि आज इधर खाना बनेगा और कल उधर !.
मेरे मायके के गाँव जोशीमठ मे बहुत बड़ी संख्या में बदरीनाथ से लाये गए यात्रियों के लिए रविग्राम, सुनील, डाडो, सिंहधार गाँव की महिला पुरुष सबने भोजन की व्यवस्था देखी. और कई दिनों से वह व्यवस्था कर रहे हैं.
ऐसे ही गौचर में जहाँ केदारनाथ की ओर यात्री लाये जा रहें वहाँ पनाई गाँव, गौचर, बन्दरखंड आदि गाँव से महिलायें लकड़ी राशन पानी बर्तन एकत्र कर उधर खाना बनाने जा रही है. स्वयं मेरी भाभी जी की दीदी और माँ कल भी राशन ले खाना बनाने गयी थी और आज भी गयी हुई है.
किन्तु हमारे एक मित्र के गाँव वालों ने बताया कि अब उनके पास भी अपने खाना बनाने के लिए राशन नहीं बचा है ... और उन्हें तो अब कोई राशन खाने से मदद मिले तो वह स्वयं के लिए लाचार हो चुके हैं ...गाँवों की दशा बहुत बुरी है .. यहाँ के युवाओं ने हर संभव यात्रियों को निकालने मे मदद की ... हां यह भी एक तथ्य है कि कई लोग चाह कर भी नहीं मदद कर पा रहे हैं क्यूंकि रास्ते टूटे हुए थे. मैं भारतीय सैनिकों को भी सलाम करती हूँ कि उनकी वजह से यात्रियों को निकालना संभव हुआ ...
इधर श्रीनगर, गढ़वाल मे भी बहुत बुरा हाल है लोगों के घर रेत और मिट्टी के अंदर नदी के पानी मे ऐसे डूबे की जैसे कोई पुरानी सभ्यता हो ... अब पानी सूखा तो मिट्टी के नीचे मकान के कही कहीं सिर्फ छत नजर आ रही है ....
मेरे पति डॉ एम एन गैरोला ने सभी डॉक्टर्स / सर्जन्स को आह्वान किया है तो ASI (एसोशियेशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया ) ने पहल की है, उनकी एक टीम आ रही है और राष्ट्रीय स्तर पर डॉक्टर्स की देश के आपदा के लिए क्या भूमिका होगी कैसे वो एक जुट हो बिना राजनीती और सरकारी मदद के पीडितों को किस किस तरह से कैसे मदद कर सकेंगे इस पर वह प्रयासरत होंगे. तथा वह ( ASI ) भी राष्ट्रीय स्तर पर अब आपदा पीडितों के लिए सहायतार्थ मदद के लिए एकजुट हो कर कार्य शुरू कर चुका है ... अभी जरूरत की चीजें जोड़ने के लिए पैसे इकठ्ठा करने शुरू किये हैं इसके अलावा डॉक्टर्स लोग इस विष्य पर विचार विमर्श करने के लिए तैयार है और साउथ से ASI डॉक्टर्स की टीम एक जुट हो रही है ... शायद एक टीम स्वयं सेवक चिकित्सकों की राष्ट्रीय स्तर पर बने, यह विचार बन् रहा है| ...
श्रीनगर में रोटरी के साथ मिल कर मेरे पति ने 72 घरों के लिए सामान मुहैया करवाया है. पर इससे वहाँ की जनता का काम नहीं बनेगा ....
धाद भी बहुत गंभीरता से सरकार पर दबाव बनाने के लिए कार्य करता रहा और आने वे समय के लिए एक ठोस पहाड़ निति और आपदा नीति के लिए कार्य कर रहा है.
और मेरे कई युवा मित्र और देश के कुछ हिस्सों से लोग संगठित हो कर मदद के लिए आगे आ रहे है. बहुत खुशी होती है कि मानवता अभी हममें जीवित है ...
अभी फंसे लोगों और यात्रियों को निकालने मे पूरा ध्यान है. गाँव के गाँव जो मिट चुके हैं उनका अभी पता नही है ... और एक समय आएगा जब सभी यात्री अपने घर खट्टी मिट्ठी और बेहद दुखद यादों को ले कर जायेंगे अपने घर किन्तु यहाँ पहाड़ मे भूख, महामारी, बेरोजगारी और बेघरों की लिए छत और कपड़ों की समस्या अब अपना विकराल मुंह खोल रही है. पहाड़ को अब स्वयं के लिए मदद की अब बेहद आवश्यकता होगी ...
~Dr. Nutan Gairola ~
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीया नूतन जी सच्चाई सी रूबरू करवाता आपका यह लेख शायद उन महान आत्माओं को झकझोरने मे सहायक हो जो वादे तो बड़े बड़े करते है परंतु कुर्सी पते ही भूल जाते हैं । क्या कहें क्या न कहें उत्तराखंड की त्रासदी ने सचमुच दिल को दहला दिया है ।
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी.. सादर धन्यवाद ... हां इस आपदा के समय मे जिससे जो हो पा रहा है वह मदद कर रहा है... यहाँ हमारी आत्मा हमारी एकता के परख है... और हम जरूर इसमें जीते किन्तु कुछेक लोगों की वजह से जिन्होंने वहाँ लोगो को ठगा उनसे मन को पीड़ा हुई.. हम उन सभी लोगो का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने ऐसे समय मे मदद की..
आ0 गैरोला जी, बाढ़ की विभीषिका और उससे होने वाले धन, जन और विकास की हानि से त्राहि-त्राहि की पुकार पूरे भारत वर्ष में हो रही है। इस घोर आपदा से निपटने के लिए एक नेता जाति को छोड़ कर शेष सारे देशवासी पीडि़तों की मदद के लिए गम्भीर होकर यथा सम्भव राहत सामाग्री की व्यवस्था करने में प्रयासरत हैं। उत्तर प्रदेश से तो कई खेप भेजी भी जा चुकी है और कई संस्थाएं अब भी प्रयासरत हैं। यहां एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि किसी मजदूर पर आक्षेप लगाने से पहले स्थानीय अराजक तत्वों और लुटिया चोरों पर ध्यान देना उचित होगा। यहां एक बात और उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड की सरकार ने सैलानियों के लिए कुछ नहीं किया- फिर राहत की सामाग्री गई कहां?....स्थानीय लोगों के हिस्से में ही गई होगी,....ऐसी आपदा किसी धर्म जाति और प्रान्त के नागरिकों विशेष के लिए नहीं आती है बल्कि यह संकट सभी को समान रूप से प्रभावित करती है। आपने बात को चर्चा का विषय बनाया इसलिए इसके हर पहलू पर विचार होना चाहिए। सादर,
आदरणीय नूतन जी,आपका समसामयिक लेख हमें उत्तराखंड की वास्तविक स्थिति से अवगत करता है।यह सच है कि इस प्राकृतिक आपदा में सम्पूर्ण उत्तरांचल पूरी तरह नष्ट हो गया है और उसे पुनः अपनी पुरानी स्थिति में वापस आने में वर्षों लग जाएंगे।इस विनाशलीला में फंसे यात्रियों को मदद करने,उन्हें सुरक्षित निकलने तथा उनके गंतव्य तक पहुँचाने में स्थानीय निवासियों एवं सेना का जो योगदान है,वह सराहनीय है........ऐसी विकट स्थिति में हम केवल स्थानीय निवासियों और यात्रियों की कुशलता के लिए प्रार्थना कर सकते हैं......ईश्वर उन सभी की सहायता करे,उन्हें इन विषम परिस्थितियों को झेलने की शक्ति और संबल दे तथा जो इस विभीषिका में मारे गए हैं,उन सभी की आत्मा को शांति दे एवं उनके परिजनों को उनका विछोह सहने की शक्ति प्रदान करे।
कितना बेबस है समाज ! जो लोग सत्ता मे आते है जाति , रंग ,छेत्र , रंग , धर्म के आधार पर हमें लड़ा कर , उन्हें चुनते समय हम ये कभी नही पूछते हमारी समस्याओ क हल कब / कैसे होंगा !
पहाड़ को तो बस दूध देने वाली गाय समझा गया है ! विकास तो पेर्येटन के लिए ही होता है लोगो के लिए नही क्युकी बड़ी जमीने सत्ता और दलालों के पास ही होती है आपदा प्रबंधन तक मे अभी तक ठोस काम नही है ! मूल निवासियों को अब भी जानवरों से निम्न माना गया है |
अब पुचा जाये दोनों दलों से प्राक्रतिक आपदा प्रबंधन मे कुछ क्यों नही हुआ ?
आदरणीया नूतन जी:
आपका लेख पढ़ कर स्पष्ट है कि समाज के एक अंश में मानवता के गिरने से कैसे बाकी सारे समाज को
दुख होता है, और कभी-कभी लगता है कि यह "एक अंश" अपनी गणना में बढ़ता जा रहा है।
पहाड़ के लोगों के लिए मेरे लिए बचपन से ही बहुत मान रहा है ... मेरी एक बचपन की मित्र और उनका परिवार
बहुत वर्षों से श्रीनगर में खो गया है।
इस कठिन समय में आपके पति जी ने डाकटरों को आवहन किया है, यह जान कर बहुत ही अच्छा लगा।
खेद है कि देश में जब भी विपदा आती है, प्रधान मंत्रि, सोनिया गांधी, और अन्य नेता न जाने किस इन्तज़ार
में बैठे रहते हैं!
सभी दुखी और पीढ़ित भाई-बाहनों के संग हमारी प्रार्थना है।
सादर,
विजय निकोर
पहाड़ के लोगों के संपर्क में एक प्रारंभ से रहा हूँ. उनकी सात्विकता और उदारता के प्रति कभी संशय नहीं रहा है. इस आपद घड़ी में भी जिस विश्वस्ति के साथ लोग जुड़े हैं वह अभिभूत तो करता ही है गर्व का कारण भी है.
नकारात्मक शक्तियाँ हर समय क्रियाशील रहती हैं उनको नकारते हुए आगे बढ़ना ही सात्विक लोगों का गुण है.
नियतं सङ्गरहितं अरागद्वेषत: कृतम् ।
अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत् सात्विकमुच्यते
पुनः निवेदन करूँगा.. कि आज कितने लोग सुंदर लाल बहुगुणा को जानते हैं या याद करते हैं जिन्होंने इस तथाकथित विकास से होने वाली बरबादी का अंदाज़ा लगा कर प्रारंभ में ही इसका विरोध करना शुरु कर दिया था. निकृष्ट स्वार्थ, अदूरदृष्टि तथा अकूत संपत्ति के सामने सब मौन हो गये थे.
अब प्रकृति विनाशक दिख रही है तो हमें रोने-पीटने का कोई अधिकार नहीं है. बस चुपचाप सिर झुकाकर अपनी गलतियों को मानते हुए हम आगे की पीढ़ियों के उत्तरदायी बनें. आज की दुःख की घड़ी में संवेदना के स्वर पहाड़ के पुत्रों-पुत्रियों के लिए निकल रहे हैं जिनने वाकई सबकुछ खोया है.
आदरणीया, सादर अभिवादन!
आपने बेहद मर्माहत करनेवाला दृश्य पेश किया है! ज्यादातर लोग अब भी सहृदय है पर कुछ असामाजिक तत्व तो हर जगह होते हैं बाहरी हों या भीतरी. मैंने टेलीविजन के मध्यम से देखा है कि तिब्बती महिलाएं भी भरपूर मदद कर रही हैं. सेना के जवानों और ITBP की जितनी भी प्रशंशा की जय कम है! इसके अलावा लंगर चलने वाले पंजाबियों के योगदान को भी नकारा नही जा सकता! अभी टाटा स्टील क दल भी गया है वहाँ मदद हेतु. टाटा ग्रुप की अभी कंपनियों के कर्मचारी अपने एक दिन क वेतन अंशदान में दिया हैं. टाटाग्रूप भी अपनी तरफ से उतनी ही राशि देकर खुद से मदद पहुंचा रही है. हम सभी को पीड़ित लोगों की हर संभव मदद करनी ही चाहिए!समसामयिक आलेख के लिए आपका आभार!
आदरणीय DP Mathur जी, प्रिय Gitika Vedika, और प्रिय Mahima Shree ... सादर धन्यवाद ... आपने पहाड़ के गाँव का दर्द समझा ... इस मुसीबत मे उनका पाना कुछ नहीं रहा और अतिथि धर्म निभाते हुए जो कुछ था वह भी खतम हो गया है... और बेरोजगारी की समस्या बहुत बड़े रूप में सामने खड़ी हो गयी है... Gitika जी ने भी बिल्कुल सही पहचाना .. आपदा प्रबंधन के नाम पर जो सिर्फ हवाई यात्राये हो रही हैं वो सिर्फ आर्थिक नुक्सान है उस से किसी लोकल याँ यात्री का कोई फायदा नहीं होएगा ... हां फसें हुए यात्रियों / लोगों को निकालने का काम सबसे जरूरी है लेकिन बहुत से हेलिकोप्टर तो VIP को हवाई सर्वेक्षण मे लगे हैं ... महिमा जी दुवाए जरूर सारा करेंगी और हमारे हाथ में और है भी क्या ..उतनी उचाई मे कोई जा नहीं सकता जबकि रास्ते टूटे हैं ... मदद के लिए गए ट्रक भी आधे रस्ते तक ही जा सक्ते हैं ... और जहाँ केम्प है वहाँ पर राशन पहुच जाए यही जरूरी है... और जहाँ हम कोई नहीं पहुच सकता वहाँ दुवाये पहुंचे की उन लोगो मे इतना सामर्थ्य उताप्पन हो कि वो अपनी सुरक्षा कर सकें .. सभी का धन्यवाद ..
आदरणीया नूतन जी आपका लेख पढ़ा .. प्राकृतिक आपदा से पहाड़वासियों और तीर्थयात्रियों का बहुत भारी मात्रा में जानमाल की हानि हुयी .. पुरे देश में इस बात से लोगो को दुःख पहुंचा है .. इस दुःख की घडी में हम सब की संवेदनाएं और कुशलता की प्रार्थना दुःख से गुजरे लोगो के लिए है .. असामाजिक तत्व हरेक जगह सक्रीय हो जाते हैं जब सुरक्षा की कमी और लोगो की लाचारी उन्हें दिखाई पड़ती है ..आपका परिवार आगे बढ़ कर मदद कर रहा है उसके लिए आप सभी बधाई के पात्र हैं .. अपने दुःख को आपने साझा किया इसके लिए आभारी हूँ किसी प्रकार की आर्थिक मदद अगर हम सभी से जरुरत पड़े तो बताएं .. दूर से हम सभी बस दुःख पीड़ितों के कुशलता की मंगलकामना और आर्थिक मदद ही कर सकने में समर्थ हैं .. सादर
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