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खो गया है अक्स असली ढूँढता है आईना।
होंठ पर मुस्कान नकली देखता है आईना।।
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इक कहानी है लिखी जो रूप के इस पृष्ठ पर।
किसका हस्ताक्षर जटिल है पूछता है आईना।।
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हाथ की सारी लकीरें जल गयीं तन्दूर में।
क्या पढ़ें किस्मत का लेखा सोचता है आईना।।
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बालपन से ढ़ो रहा वो ईंट सर पर पूज्यवर।
भूख से संघर्ष का कल बाँचता है आईना।।
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मर रहा था अस्थि का ढाँचा जिलानें के लिये।
बिक गयी माता…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 30, 2016 at 11:30pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 12, 2016 at 9:53am — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 10, 2016 at 10:30pm — 3 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 10, 2016 at 10:00am — 4 Comments
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राजनीति से जिन लोगों की, रोज़ी रोटी चलती है।
सच का करें विरोध अगर वो, तो उनकी क्या गलती है।।
किन्तु लेखनी वाले लोगों, से मेरा बस प्रश्न यही।
उनकी नैतिकता क्यों झूठे रंगों में हाँ ढ़लती है।।
वर्ग विभाजन लोकतंत्र में तो बस सत्ता की कुंजी।
किन्तु नीति यह सृजन क्षेत्र में आख़िर काहें मिलती है।।
यद्यपि आज़ादी से लेकर तुझसे नेता कई लड़े।
फिर भी अरे गरीबी तेरी चूल न काहें हिलती है।।
सोचो नफ़रत…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 4, 2016 at 11:51pm — 9 Comments
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