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किस्मत की लकीरों पर खुश-रंग चढ़ा दूँगा
मैं दर्द के सागर में पंकज को खिला दूँगा
ज्यादा का नहीं केवल छोटा सा है इक दावा
ग़र वक्त दो तुम को मैं खुद तुम से मिला दूँगा
कुछ और भले जग को दे पाऊँ नहीं लेकिन
जीने का सलीका मैं अंदाज़ सिखा दूँगा
कंक्रीट की बस्ती में मन घुटता है रोता है
वादा है मैं बागों का इक शह्र बसा दूँगा
आभास की बस्ती है, अहसास पे जीती है
जन जन के मनस में मैं यह मंत्र जगा…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 27, 2019 at 12:43am — 6 Comments
प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।
भूख प्यास नींद चैन सब गँवा कर
अवधान में एकल उद्दीपक बसा कर
उस तक पहुँचने का सतत यत्न करना
प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।
इच्छित के प्रति समर्पण है प्रेम
उद्देश्य के प्रति अभ्यर्पण है प्रेम
लक्ष्य के प्रति अनवरत गतिशील रहना
प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।
प्रेयसी के अंक पाश तक सीमित नहीं
काम जनित आकर्षण तो किंचित नहीं
कामना के केंद्र-बिंदु पर…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 20, 2019 at 1:01pm — No Comments
स्वप्न के सीवान में ज़ुल्फ़ों के बादल छा गए
चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।
चूम कर नज़रों से नज़रें, गुदगुदा कर मन गई
रूपसी जादू भरी थी मन की अभिहर* बन गई
तन सुरभि का यूँ असर खुद को भुला कर आ गए
चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।
मन्द सी मुस्कान उसके होठों पर जैसे खिली
इस हृदय की बन्द साँकल खुद अचानक से खुली
हम मनस में रूप उसका लो सजा कर आ गए
चाँद क्या आया नज़र हम दिल…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 10, 2019 at 9:00am — 4 Comments
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