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Saalim sheikh's Blog – May 2016 Archive (2)

नज़्म - मेरी परी

हाँ वो ख्वाब हैं 

वो ख्वाब ही हैं जब तुम 

तख़य्युल के परों से उड़ते 

चाँद का नूर चुरा लाती हो 

और तोड़ कर बादलों के रेशमी टुकड़े 

गूंध कर उनको चांदनी में फिर 

किसी अनजान ज़मीं पर उसके 

महल तामीर किये हैं तुमने 

और उन महलों में बसा रखें हैं वो सारे मंज़र 

जो हक़ीक़त में बदल जाएं तो 

दर्द दुनिया से चले जाएं हमेशा के लिए

हाँ वो ख्वाब हैं जब तुम 

चेहरे पे हवाओं की शोखियाँ…

Continue

Added by saalim sheikh on May 22, 2016 at 11:37am — 3 Comments

नज़्म - तुम्हारे ख़त

कितना अच्छा होता न ?

अगर वो सारे ख़त तुम्हारे

जिन्हें मैं रोज़ पढ़ता हूँ

पढ़ कर मुस्कुराता हूँ

कभी आंसू भी आते हैं

मगर गिरने नहीं देता

कि कोई लफ्ज़ जो तुमने लिखा

मिट जाए न मेरे आंसू से

कितना अच्छा होता

जो ये सारे ख़त तुम्हारे

तुमने न लिखे होते

या मेरा पता गलत होता

तो आज जब तुम अहद सारे भूल बैठे हो

मैं भी भूल सकता था

सभी क़समें सभी वादे

सभी शिकवे सभी आहें

जो हैं जा ब जा बिखरे हुए

हर एक ख़त की भीगी सत्रों में

और जो… Continue

Added by saalim sheikh on May 8, 2016 at 11:41pm — 5 Comments

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