२१२२/११ २ २/२२ (११२)
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तेरे सदमे से उबर जाऊँगा,
न उबर पाया तो मर जाऊँगा.
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अपनी ही मौत का इल्ज़ाम हूँ मैं
क्यूँ किसी ग़ैर के सर जाऊँगा.
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मेरी बेटी! तू मुझे “भौ” कर के
जब डरायेगी तो डर जाऊँगा.
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बूँद रहमत की, फ़क़त एक ही बूँद
काश बरसे तो मैं तर जाऊँगा.
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आती सदियों की तलब की ख़ातिर
जाम कुछ “नूर” से भर जाऊँगा.
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निलेश "नूर"
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मौलिक/ अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 23, 2017 at 7:00pm — 13 Comments
१२१२/११२२/१२१२/२२ (११२)
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किसे गुरेज़ जो दो-चार झूठ बोले है,
मगर वो शख्स लगातार झूठ बोले है.
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चली भी आ कि तुझे पार मैं लगा दूँगी,
हमारी नाव से मँझधार झूठ बोले है.
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सवाल-ए-वस्ल पे करना यूँ हर दफ़ा इन्कार
ज़रूर मुझ से मेरा यार झूठ बोले है.
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कहानी ख़ूब लिखी है ख़ुदा ने दुनिया की,
कि इस में जो भी है किरदार, झूठ बोले है.
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पटकना रूह का ज़िन्दान-ए-जिस्म में माथा,
बिख़रना तय है प् दीवार झूठ बोले है.
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निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 21, 2017 at 9:33am — 25 Comments
22 11 22 11 22 11 22
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मैं पहले-पहल शौक़ से लाया गया दिल में
फ़िर नाज़ से कुछ रोज़ बसाया गया दिल में.
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वो ख़त तो बहुत बाद में शोलों का हुआ था,
तिल तिल के उसे पहले जलाया गया दिल में.
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हालाँकि मुहब्बत वो मुकम्मल न हो पाई
शिद्दत से बहुत जिस को निभाया गया दिल में.
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अंजाम पता है हमें कुछ और है फिर भी,
हीरो को हिरोइन से मिलाया गया दिल में.
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हम सच में तेरी राह में कलियाँ क्या बिछाते
पलकों को मगर सच में बिछाया गया…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2017 at 7:30pm — 22 Comments
122/122/122/12
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नुमायाँ है तू अपनी गुफ़्तार में,
सफ़ाई न दे हम को बेकार में.
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फ़क़त एक मिसरे में गीता सुनो
है संसार मुझ में, मैं संसार में.
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ये तामीर-ए-क़ुदरत भी कुछ कम नहीं
हिफ़ाज़त से रक्खा है गुल, ख़ार में.
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कहानी को अंजाम होने तो दो
सभी लौट आयेंगे किरदार में.
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ऐ ज़िल्ल-ए-ईलाही!! ये इन्साफ़ हो,
कि चुनवा दो शैख़ू को दीवार में.
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तू शिद्दत से माथा पटक कर तो देख
कोई दर निकल…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2017 at 9:30am — 22 Comments
२१२२, २१२२,२१२
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बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?
हो गए हैं स्वप्न सब साकार क्या?
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सत्य से बढ़कर तो ईश्वर भी नहीं,
राष्ट्र क्या फिर मित्र क्या परिवार क्या?
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राष्ट्र की सेवा सभी का धर्म है,
कर रहे हो तुम कोई उपकार क्या?
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देख कर इक कोमलांगी के अधर,
कल्पना लेने लगी आकार क्या?
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आचरण में धर्मग्रंथो को उतार,
बाद में दे ज्ञान उनका सार क्या.
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निलेश "नूर"
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मौलिक/ अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 9:24am — 25 Comments
२१२२/२१२२/२१२
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दर्पणों से कब हमारा मन लगा
पत्थरों के मध्य अपनापन लगा.
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लिप्त है माया में अपना ही शरीर
ये समझ पाने में इक जीवन लगा.
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तप्त मरुथल सी ह्रदय की धौंकनी
हाथ जब उस ने रखा चन्दन लगा.
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मूर्खता पर करते हैं परिहास अब
जो था पीतल वो हमें कुन्दन लगा.
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प्रेम में भी कसमसाहट सी रही
प्रेम मेरा आपको बन्धन लगा.
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जल रहे हैं हम यहाँ प्रेमाग्नि में
और उस पर ये मुआ सावन लगा.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 10:00am — 37 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
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छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
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देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”
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क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
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चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
जब से आधे चाँद में आया है कासा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:00am — 54 Comments
२१२२/११२२/२२ (११२)
रोज़ जो मुझ को नया चाहती है
ज़िन्दगी मुझ से तू क्या चाहती है?
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मौत की शक्ल पहन कर शायद
ज़िन्दगी बदली क़बा चाहती है.
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मशवरे यूँ मुझे देती है अना
जैसे सचमुच में भला चाहती है.
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इक सितमगर जो मसीहा भी न हो,
नई दुनिया वो ख़ुदा चाहती है.
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“नूर’ बुझ जाये चिराग़ों की तरह
क्या ही नादान हवा चाहती है.
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निलेश"नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2017 at 2:00pm — 34 Comments
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