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मनोज अहसास's Blog – May 2020 Archive (2)

अहसास की ग़ज़ल -मनोज अहसास

2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2

अपने ही पापों से मन घबराता है

सीने में इक अपराधों का खाता है

लाचारी से कुछ भारी है मजबूरी

आँखों में ताकत है देख न पाता है

उसकी मजबूरी समझूँ या अपना दुख

गुलशन से सहरा में कोई आता है?

लाख कोशिशें कर के माना है हमनें

जो होना है आखिर वो हो जाता है

दिल मे कोई भीड़ सलामत है लेकिन

तेरा चेहरा साफ नहीं दिख पाता है

क्या जाने अफसाना है या सच कोई

आखिर में जो सच की जीत बताता है

ढलता है जब सूरज अपनी भी…

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Added by मनोज अहसास on May 29, 2020 at 12:35pm — 8 Comments

अहसास की ग़ज़ल -मनोज अहसास

2122     2122     2122     212

एक ताज़ा ग़ज़ल

तेरी चौखट तक पहुँचने के हैं अब आसार कम.

फासला लंबा बहुत है या मेरी रफ्तार कम.

कौन से रस्ते पे चलके मैं चला जाऊं कहाँ,

डर बहकने का है दिलबर हौसला इस बार कम.

हद से ज्यादा बेबसी है पर इरादे बेहिसाब,

हमसफर तो मिल गए हैं मिलते हैं गमख़ार कम.

घर पहुँचने की तड़प में इस सफर में जाने जां,

रोटिया दिलकश अधिक है और तेरे रुखसार कम.

जोड़ कर रखा था नाता…

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Added by मनोज अहसास on May 14, 2020 at 12:22am — 5 Comments

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