बह्र-फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फैलुन
मुँह अँधेरे वो चला आया मेरे घर कमबख्त
आ गई फिर से मुसीबत मेरे सर पर कमबख्त
इस समय खौफजदा लगती है दुनिया सारी
सबके सीने में समाया हुआ है डर कमबख्त
चाहता हूँ मैं उड़ूँ नील गगन मे लेकिन
साथ देते ही नहीं अब मेरे ये पर कमबख्त
बन के तूफान चला आया शहर के अन्दर
कर गया कितनों को बरबाद समन्दर कमबख्त
लाख चाहूँ मैं उसे मुट्ठी में कर लूँ लेकिन
दो कदम दूर ही रहता है मुकद्दर कमबख्त
वो भी कहता है कि…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on May 29, 2020 at 8:30am — 2 Comments
बह्र - मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन
221 2121 1221 212
अन्धों के गांव में भी कई बार ख्वामखाह
करती है रोज रोज वो ऋंगार ख्वामखाह
रिश्ता नहीं है कोई भी उससे तो दूर तक
मुजरिम का बन गया है तरफदार ख्वामखाह
फोकट में एक रोज की छुट्टी चली गई
इतवार को ही पड़ गया त्यौहार ख्वामखाह
नाटक में चाहते थे मिले राम ही का रोल
रावण का मत्थे मढ़ गया किरदार ख्वामखाह
ये बुद्ध की कबीर की चिश्ती की है जमीन
फिर आप भाँजते हैं क्यूँ तलवार ख्वामखाह
खबरे बढ़ा चढ़ा…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on May 25, 2020 at 5:07pm — 16 Comments
बह्र - फाइलातुन फाइलातुन फा
2122 2122 2
इस तरफ इंसान कड़की में
उस तरफ भगवान कड़की में
एक पल को भी नहीं भटका
राह से ईमान कड़की में
लाक डाउन में गई रोजी
सब बिके सामान कड़की में
ज़िन्दगी रफ्तार से दौड़े
हैं नहीं आसान कड़की में
हैं बहुत बीमार हफ्तों से
घर में अम्मी जान कड़की में
भूल बैठे सब हंसी ठठ्ठा
गुम हुई मुस्कान कड़की में
क्या कहें बरसात से पहले
ढह गया…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on May 23, 2020 at 9:11am — 6 Comments
बह्र- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाा
2122 2122 2122 2
ये हंसी ये मुस्कराहट कातिलाना है
हां तभी तुझपर फिदा सारा ज़माना है
लाॅक डाउन तोड़कर घर से निकलकर आ
देख तो मौसम बड़ा ही आशिकाना है
ये गदाईगीर का हो ही नहीं सकता
ये नगर के शाह का ही शामियाना है
बांटते थे ग़म खुशी आपस में पहले दोस्त
अब कहां माहौल वैसा दोस्ताना है
बेसबब हैं कैद घर में लोग हफ्तों से
कब रिहाई होगी इनकी क्या ठिकाना…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on May 17, 2020 at 8:30pm — 4 Comments
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