बह्र- फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
2122 1212 22
मार कर पेट में कटारी खुद।
मर गया एक दिन मदारी खुद।
अपने कर्मों से वो जुआरी खुद।
हो न जाये कभी भिखारी खुद।
पड़ गये दाँव पेंच सब उल्टे,
फँस गया जाल में शिकारी खुद।
आगये दिन हुजूर अब अच्छे
दान देने लगे भिखारी खुद।
हैं नशामुक्ति के अलम्बरदार,
पर चलाते हैं वो कलारी खुद।
खानदानी हुनर है बच्चों में,
सीख लेते हैं दस्तकारी खुद।
कर्ज बेटा चुका न पाया तो,
वो चुकाने लगे उधारी खुद।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 सर लाजवाब प्रस्तुति हेतु बधाई
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसन्द आई एवं उत्साह वर्धन किया पुन: धन्यवाद।
आदर्णीय श्यामनारायण वर्मा जी गज़ल पसन्दगी केलिये सादर आभार
आदरणीय हर्ष महाजन जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पसन्द करने एवं उत्साह वर्धन के लिये।
वाह बढ़िया सरस ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर
आदर्णीय नीलेश जी ऐसा कभी कभी हो जाता है। मुझसे भी होता है। मुझसे बह्र में भी गल्ती हो जाती है और ओपेन बुक्स आन लाइन में विद्वान सदस्य त्रुटि दूर कर देते हैं। आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
वाह !!
आदरणीय राम अवध जी, अच्छी गजल के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई ।
आ. राम अवध जी,
आप की तक्तीअ बिलकुल ठीक है ..मिसरा भी बहर में है..मेरे समझने में कोई भूल हुई इ..
मैं क्षमा सहित अपना कमेंट वापस लेता हूँ..
सादर
आदर्णीया नीलम उपाध्याय जी ग़ज़ल पसन्दगी के लिये सादर आभार।
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