बह्र - मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन
बुढ़ापा आ गया लेकिन समझदारी नहीं आई।
रहे बुद्धू के बुद्धू और हुशियारी नहीं आई।
किया ऐलान देने की मदद सरकार ने लेकिन
हमेशा की तरह इमदाद सरकारी नहीं आई।
पड़ोसी के जले घर खूब धू धू कर मगर
साहब,
खुदा का शुक्र मेरे घर मे चिंगारी नहीं आई।
ढिंढोरा देश भक्ति का भले ही हम नहीं पीटें,
मगर सच है लहू में अपने गद्दारी नहीं आई।
बहुत से लोग निन्दा रोग से बीमार हैं लेकिन
हमारे मन में ऐसी कोई बीमारी नहीं आई।
करोड़ों का घोटाला कर ये ताजिर भाग जाते हैं
मैं मुफलिस हूँ मग़र उन जैसी ऐयारी नहीं आई।
मौलिक एवं अप्रकाशित
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जनाब राम अवध साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
आ० लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत खूब..
आदर्णीय तेजवीर सिंह जी ग़ज़ल पसन्दगी और उत्साह वर्धन के लिये सादर आभार।
आदर्णीय समर कबीर साहब जी मार्गदर्शन के लिये सादर आभार। आपके द्वारा दिये गये बहुमूल्य सुझाव के अनुसार ग़ज़ल में सुधार अवश्य करूँगा। पुन: धन्यवाद।
हार्दिक बधाई आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी।बेहतरीन गज़ल।
ढिंढोरा देश भक्ति का भले ही हम नहीं पीटें,
मगर सच है लहू में अपने गद्दारी नहीं आई।
जनाब राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले के सानी मिसरे में 'और' शब्द की जगह "आप" कर लें,मतले की सुंदरता बढ़ जायेगी ।
दूसरे शैर के ऊला मिसरे में शिल्प दोष है,इसे यूँ कर सकते हैं :-
'किये सरकार ने ऐलान तो इसके लिये लेकिन'
आख़री शैर के सानी मिसरे में 'मगर' की जगह "मुझे"करना उचित होगा ।
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