दूर गगन के टिम-टिम तारें,
लुक छिप कर सब करें इशारे।
धरती पर क्षण भंगुर जीवन,
जैसे निश में जुगुनू हारे।।
स्वार्थी मानव लोभ सताए,
दम्भ ज्ञान से मन बहलाए।
अहं द्वेष माया के बन्धन,
जैसे मृग कश्तूरी धारे।।1
देश-गॉंव की बातें करके,
जाति-धर्म को आड़े करके।
स्वार्थ फलित विष तन में बोते,
जैसे राजनीति भिनसारे।।2
भव सागर में कश्ती सारी,
तूफां संग बवन्डर भारी।
उमड़-घुमड़ कर सॉंझ सबेरे,
जैसे वर्षा-सूखा…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2014 at 10:53am — 7 Comments
नवगीत...आजाद शुका खूंखार हुआ
छत्तीस गढ़ के दो राहे पर,
तेरा मेरा साथ हुआ।
एक मात्र माशा रत्ती का
जमकर सोलह श्रृंगार हुआ।।
एक-एक मिलकर जो ग्यारह,
वह दो नम्बर व्यवहार करे।
तीन तिकड़मी सी मॅंहगाई,
जीवन भर आघात करे।
तीन-पॉंच मन राजनीति का,
आजाद शुका खूंखार हुआ।।1
चार वेद-ॠतु-वर्ण व्यवस्था,
चारों खाने चित्त हुए जब।
पंच तत्व कण के परमेश्वर-
छिन्न--िभन्न रिश्ते करते अब।
छवों शस्त्र के सात रंग-रस,
स्वर…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 3, 2014 at 9:40pm — 7 Comments
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