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उस बेवफ़ा से दिल का लगाना बहुत हुआ
मजबूर दिल से हो ये बहाना बहुत हुआ [1]
छोड़ो ये ज़ख़्म-ए-दिल का फ़साना बहुत हुआ
ये आशिक़ी का राग पुराना बहुत हुआ [2]
चलते ही चलते दूर निकल आये इस क़दर
ख़ुद से मिले हुए भी ज़माना बहुत हुआ [3]
ख़ुद से भी कोई रोज़ मुलाक़ात कीजिये
ये दूसरों से मिलना मिलाना बहुत हुआ [4]
तस्कीन दे न पाएँगे काग़ज़ पे कुछ निशाँ
लिख लिख के उसका नाम मिटाना बहुत हुआ [5]
अब इक…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on May 24, 2020 at 10:32am — 8 Comments
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