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हर तरफ़ रौशनी के डेरे हैं
मेरी क़िस्मत में क्यूँ अँधेरे हैं [1]
एक अर्सा हुआ उन्हें खोये
अब भी कहता है दिल वो मेरे हैं [2]
और कुछ देर हौसला रखिये
शब के आगे ही तो सवेरे हैं [3]
है धनक एक एक ज़र्रे में
रंग ये किसने यूँ बिखेरे हैं [4]
फ़ैसला सीरतों का यूँ ही सही
ऐब मेरे हैं वस्फ़ तेरे हैं [5]
किस तरह शुक्रिया करूँ उनका
जिन दुआओं ने दिन ये फेरे हैं [6]
इस शरीफ़ों के शह्र में 'शाहिद'
कू-ब-कू चोर और लुटेरे हैं [7]
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहुत शुक्रिय: आदरणीय सारथी बैद्यनाथ जी।
Well try.. keep it up.
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब, सुख़न-नवाज़ी के लिए आपका बहुत शुक्रिय:।
बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीय रवि जी...बधाई
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, आपकी हौसला-अफ़ज़ाई और बधाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:।
आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब, आपकी आपकी हौसला-अफ़ज़ाई और इनायत के लिए तह-ए- दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आपका हार्दिक आभार!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय रवि जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, उम्द: ग़ज़ल कही आपने, मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ ।
आ. भाई रवि जी , सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
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