एक ---
मेरे, उसके बीच
बहता है
एक खामोश दरिया
जिस पे कोई पुल नहीं है
चाहूँ तो
शब्दों के खम्बो
वादों के फट्टों का
पुल खड़ा कर सकता हूँ
मगर
मुझे अच्छा लगता है
दरिया में
उतारना खामोशी से
और फिर
डूबते उतरते
उतर जाना उस पार
दो ----
अनवरत
चल रहा हूँ
नापता
शब्दों की सड़क
ताकि पहुंच सकूँ
अंतिम छोर तक
कूद जाने के लिए
एक खामोश समंदर में
हमेशा हमेशा के…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 27, 2014 at 5:30pm — 10 Comments
(बर्फ सी उजली व नीली ऑखों वाली नील मैम को यह कहानी नज़र करता हूं। जो तन व मन से खूबसूरत तो हैं ही, और जिनकी खूबसूरत उंगलियां पत्थरों मे भी जान ड़ाल देती हैं। जिन्हें आज भी कामशेत पूणे की वादियों में देखा जा सकता है। उन्ही की जिंदगी से यह कहानी चुरायी है।’)
आज भी - दिवाकर अपने सातों रंग समेट मेज पे पसरा है । पहाड़ खिला है । हरे, भूरे, मटमैले रंगो मे अपनी पूरी भव्यता के साथ । रोज सा। मानो सातो रंग छिटक दिये गये हों एक एक कर। इंद्र धनुष…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 4, 2014 at 1:30pm — 6 Comments
केदार के मरने की खबर सुनते ही एक मिनट को राय साहब चौंके फिर अपने को सामान्य करते हुये बस इतना ही कहा अरे अभी उसी दिन तो आफिस में आया था पेंशन लेने तब तो ठीक ठाक था। ‘हां, रात हार्ट अटैक पड गया अचानक डाक्टर के यहां भी नही ले जा पाया गया’ राय साहब ने कोई जवाब नहीं दिया बस हॉथो से इशरा किय, सब उपर वाले की माया है, और चुपचाप चाय की प्याली के साथ साथ अखबार की खबरों को पढने लगे। खबर क्या पढ रहे थे। इसी बहाने कुछ सोच रहे थे।
चाय खत्म करके राय साहब ने अपनी अलमारी खोल के देखा पचपन हजार…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 2, 2014 at 1:30pm — 12 Comments
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