जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम …..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो...
केशुओं से झांकते तेरे नैन दोनों
प्याले मदिरा के उफनते लग रहे
काया-कंचन ज्यों कमलदल फिसलन भरे
नैन-अमृत-मद ये तेरा छक पियें
बदहवाशी मूक दर्शक मै खड़ा
तुम इशारों से ठिठोली कर रही हो
जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम ..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो
इस सरोवर में कमल से खेलती
चूमती चिकने दलों ज्यों…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 25, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
कौन हो तुम प्रेयसी ?
कल्पना, ख़ुशी या गम
सोचता हूँ मुस्काता हूँ,
हँसता हूँ, गाता हूँ ,
गुनगुनाता हूँ
मन के 'पर' लग जाते हैं
घुंघराली जुल्फें
चाँद सा चेहरा
कंटीले कजरारे नैन
झील सी आँखों के प्रहरी-
देवदार, सुगन्धित काया
मेनका-कामिनी,
गज…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 11, 2014 at 10:30am — 19 Comments
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