तू मेरे लिए परियों का रूप है जैसे,
कड़कती ठंड मे सुहानी धूप हैं जैसे,
तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,
या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।
तू हैं मेरी हर उदासी के मर्ज की दवा जैसी,
या उमस मे चली शीतल हवा जैसी।
तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,
या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।
वो पहाड़ की चोटी पे सजी सूरज की किरण है जैसे,
या चाँदनी बन करती वो सारी ज़मीन रोशन हैं जैसे
मेरी आँख मे आँसू आते ही मेरे संग संग वो भी…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on May 24, 2012 at 12:19pm — 9 Comments
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