जिंदगी
दर्द है या गम,
कि है नीरस सावन,
या कागज कोरा..
जाती हुयी शाम को ..
आती हुयी रात को ..
खिलखिलाती वो हंसी को,
पंक्षियों के कोलाहल को...
उसको है…
Added by Amod Kumar Srivastava on May 27, 2013 at 4:30pm — 7 Comments
जाओ तुमको तुम्हारे हाल पे
मेने छोड़ दिया
तुमको इससे ज्यादा में और
दे भी क्या सकता था ...
देखो इस सूखे दरख्त को जिसने
बहुत फल खिलाये थे .. पर…
आज यहाँ परिंदा भी अपना
घोसला नहीं बनाता…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on May 9, 2013 at 12:08pm — 6 Comments
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