“ओय! रितु.. अब बता कैसी लग रही हूँ...?” सोनिया ने पूरा ट्रडिशनल श्रृंगार करके, अपनी फ्रेंड से पूछा
“अरे! सोनिया. तू तो बिलकुल अबला लग रही है यार. भारतीय नारी..हा हा हा हा”
“हाँ! यार..अबला ही तो दिखना होगा. ऐसा मेरे वकील का कहना है, ताकि कल कोर्ट में जज सहानुभूति के तौर पर जल्दी से मेंटेनेंस बना देगा तो मुझे अपने हसबेंड के घिसे-पिटे विचारों और बूढ़े सास-ससुर की खांसी-खुजली से छुटकारा मिल जाएगा.”
"उफ्फ!! बड़ी दूर की सोच होती है यार, वकीलों की.. अब चल ये पकड़ तेरे जींस-टॉप,…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 18, 2015 at 9:30am — 26 Comments
“ मैंने यह सब कुछ अपनी मजबूरी में किया है, जज साहब. मृतक मेरा सगा भाई ही था, उसने मेरा जीना हराम कर दिया था. धोखे से मेरी जमीन हड़प ली और मैं अपने पत्नी और बच्चों के साथ सड़क पर आ गया था. भूखों मरने की नौबत आ गई थी, साहब..” उसने अपने भाई की हत्या का गुनाह कुबूल करते हुए अदालत में अपना बयान दिया
“ लेकिन, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार तुमने अपने भाई को सुबह ५ बजे ही खेत पर, गला घोंटकर मार डाला फिर तुम दोपहर में उस लाश को खीचकर कहा ले जा रहे थे..” सरकारी वकील ने कटघरे में खड़े,…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 14, 2015 at 10:18am — 36 Comments
सब कुछ
है तेरा
तुझ पर, तेरे कारण ही
और तेरे ही लिए हैं
अपने दामन में पाले हैं तूने
समान, असमान भाव से
कांटे भी, फूल भी
देव और दानव
जल भी तेरा, थल भी
मरुस्थल और तेरे ही है पर्वत
तेरी ही नदियाँ
तेरा ही आश्रय है, सागर को
अश्विन से फाल्गुन तक
सिकुड़ती है, तू
ज्येष्ठ की दहक में
तपती और पिघलती रही
अथाह सहनशीलता है, तुझमे
इस तरह सिकुड़ने और
पिघलने के…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 10, 2015 at 11:26am — 12 Comments
समय कितना बदल गया है. वो दिन थे जब शरीर तोड़कर उतना ही पैदा कर पाता था, कि साल भर अपने परिवार का पेट भर सके.. अगर चार दिन को कोई मेहमान आ जाए तो आस-पड़ोस से उधार मांग लाता. और खूब से खूब इस बार के कर्ज के गड्डे को भर, फिर खुदाई शुरू कर देता..
आज भरपूर बिजली, पानी और कम ब्याज पर सरकारी ऋण से पैदावार बहुत बड़ गई है, अश्विन और बैशाख के माह में हर तरफ अनाज ही अनाज. खुशियों के सपने संजोये, बैलगाड़ी की जगह ट्रकों से अनाज लेकर उपार्जन केंद्र पर खड़ा है..
“ बाबूजी!! यह रहा मेरा…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 11:11am — 24 Comments
“सुनो! कितनी अच्छी हो तुम, कितना प्रेम है तुम्हारे पास मेरे लिए. मेरा शादी-सुदा होना भी तुमने अपनी गहराइयों से स्वीकार लिया है. कुछ कहो न!, ऐसा क्या है मुझमे..?”
“ मुझे, तुमसे सब कुछ मिल रहा है जो किसी से शादी के बाद जो मिलता. और मैं तुमसे अपनी मर्जी तक सम्बन्ध बनाये रख सकती हूँ, क्यूंकि तुम शादी-शुदा होने के कारण, समाज अपने परिवार और क़ानून के डर से मुझसे जबरदस्ती नहीं कर सकते. नहीं तो आजकल के बेचलर...तौबा-तौबा “
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व्…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 5, 2015 at 12:01pm — 19 Comments
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