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Neeraj Neer's Blog – May 2017 Archive (1)

ग़ज़ल : इस्लाह हेतू

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नजर से दूर रहकर भी जो दिल के पास रहती है

कभी नींदें चुराती है कभी ख्वाबों में मिलती है. 

चमकना चाँद सा उसका मेरी हर बात पर हँसना

कहीं फूलों की नगरी में कोई वीणा सी बजती है. 

ये भोलापन हमारा है कि है जादूगरी उसकी

वफ़ा फितरत नहीं जिसकी वही दिलदार लगती है. 

कभी मैं भूल जाऊँगा उसे कह तो दिया लेकिन

जो दिल पर हाथ रक्खा तो वही धड़कन सी लगती है. 

तुम्हारा जो बचा था पास मेरे ले लिया तुमने…

Continue

Added by Neeraj Neer on May 6, 2017 at 7:55am — 19 Comments

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