सभी अपने पैने नख और दन्त अंदर समेटे पण्डित जी की श्राद वाली बात बैचेनी के साथ सुन रहे हैं।एक सुप्त ज्वालामुखी जो बिना वज़ह के अंदर ही अंदर धधक रहा है।साल भर में श्मशान वैराग्य खत्म हो चुका है और मानवीय विराग मुँह फाड़े निगलने को आतुर बैठा है। अभी अंतिम बंटवारा होना बाकि है।
" बड़े शहरों में ये सब करना मुश्किल है, न पण्डित मिलते हैं। न समय है।कब श्राद आये कब गए। मालूम ही नहीं चलता, मुझसे कोई उम्मीद मत रखना। " माँ और पिता का सबसे लाड़ला छोटा दो टूक बोला।
खिड़की से बाहर देखते मंझले को…
Added by Janki wahie on June 22, 2016 at 6:30pm — 10 Comments
Added by Janki wahie on June 18, 2016 at 1:29pm — 16 Comments
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