ये सज़ा मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की
मिल रही हें बस मुझको ठोकरें ज़माने की
फैसला हे ये मेरा मैं तुम्हें भुला दूंगा
तुमको भी इजाज़त हे मुझको भूल जाने की
ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा
ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की
रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब…
ContinueAdded by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on June 11, 2012 at 12:44pm — 14 Comments
फिर से गुजरे वो पल याद आने लगे
भूल जाने में जिनको ज़माने लगे
हैं वही शोखियाँ है वही बांकपन
जितने मंज़र हैं सारे पुराने लगे
कोनसी शै हे जिसपर भरोसा करें
अब तो साए भी अपने डराने लगे
उनको खुशियाँ मिलीं हे ख़ुदा का करम
हाथ अपने ग़मों के खजाने लगे
अपनी हसरत बताने जिन्हें आये थे
वो तो अपना ही मुज़्दा सुनाने लगे
Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on June 1, 2012 at 2:55pm — 16 Comments
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