चाहा था दिल ने जिसको वो दिलदार कब मिला
सब कुछ मिला जहाँ में मगर प्यार कब मिला
तनहा ही ते किये हैं ये पुरखार रास्ते
इस जीस्त के सफ़र में कोई यार कब मिला
बाज़ार से भी गुज़रे हैं हाथों में दिल लिए
लेकिन हमारे दिल को खरीदार कब मिला
उल्फत में जां भी हंस के लुटा देते हम मगर
हम को वफ़ा का कोई तलबगार कब मिला
तनहा ही लड़ रहा हूँ हालाते जीस्त से
हसरत को जिंदगी में मददगार कब मिला
Comment
ji bahut bahut shukriya veenus ji
आय हाय हसरत साहब आपने तो दिल बाग बाग कर दिया
क्या खूबसूरत अशआर से नवाजा है मंच को
माशाअल्लाह लाजवाब
ji bahut bahut shukriya adarniye saurabh ji raj ji sandeep ji
वाह वाह साहब
बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने
दाद क़ुबूल फरमाइए आदरणीय
बहुत खूब-
//तनहा ही लड़ रहा हूँ हालाते जीस्त से
हसरत को जिंदगी में मददगार कब मिला//
हसरतें पूरी हुईं तो ख़त्म हुईं, दिल अब कितना खाली खाली है. बधाई हो भाई हसरत साहेब!
हसरत भाई, इस ग़ज़ल के लिये दाद पेश कर रहा हूँ ..
bahut bahut shukriyah rajesh kumari ji
उल्फत में जां भी हंस के लुटा देते हम मगर
हम को वफ़ा का कोई तलबगार कब मिला ----गजब का शेर ---बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है दाद कबूल करें शरीफ अहमद जी
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