फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन
उसने बिखरे काग़ज़ों को छू के संदल कर दिया
इक अधूरी सी ग़ज़ल को यूँ मुकम्मल कर दिया
कुछ तो दीवाना…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on June 30, 2018 at 8:30am — 18 Comments
अरकान फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
क्या सबब था,किसलिये दुनिया से मैं डरता रहा
सर झुका कर जिसने जो भी कह दिया करता रहा
सी दिया था मेरे होटों को ज़माने ने मगर
ज़िक्र सुब्ह-ओ-शाम तेरा फिर भी मैं करता रहा
ज़िन्दगी के रास्ते में ज़ख़्म जो मुझको मिले
चुपके चुपके प्यार के मरहम से वो भरता रहा
जाते जाते वो मुझे कह कर गये थे इसलिये
लम्हा लम्हा ज़िन्दगी जीता रहा मरता रहा
सादगी की मैंने ये क़ीमत चुकाई उम्र…
Added by santosh khirwadkar on June 3, 2018 at 4:34pm — 12 Comments
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