For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल के नज़दीक से ....”संतोष”

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन/फ़इलुन

दिल के नज़दीक से गुज़रो तो बता कर जाना

ये भी चाहत की है इक रस्म निभा कर जाना

तुम मुझे छोड़ के जाते हो तो जाओ लेकिन

अपने भेजे हुए ख़त सारे जला कर जाना

क्या बताऊंगा जुदाई का सबब लोगों को

जो हक़ीक़त है ज़माने को बता कर जाना

ताकि तन्हाई से घबराऊँ तो बातें कर लूँ

अपनी तस्वीर को कमरे में लगा कर जाना

तुम ज़माने का भला करने चले हो देखो

कोई 'संतोष' के हक़ में भी दुआ कर जाना

संतोष_खिरवड़कर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by santosh khirwadkar on July 30, 2018 at 2:20pm

धन्यवाद आ. बृजेश जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 29, 2018 at 2:14pm

वाह बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय..बधाई

Comment by santosh khirwadkar on July 27, 2018 at 9:12am

बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज वीर साहब

Comment by TEJ VEER SINGH on July 26, 2018 at 8:47pm

हार्दिक बधाई आदरणीय संतोष जी। बेहतरीन गज़ल।

क्या बताऊंगा जुदाई का सबब लोगों को

जो हक़ीक़त है ज़माने को बता कर जाना

Comment by santosh khirwadkar on July 25, 2018 at 8:27pm

प्रणाम आदरणीय , बहुत-बहुत शुक्रिया!!

Comment by Samar kabeer on July 25, 2018 at 11:46am

जनाब संतोष जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by santosh khirwadkar on July 24, 2018 at 6:43pm

धन्यवाद आ धामी जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 24, 2018 at 4:46pm

आ. संतोष जी, सुंदर गजल हुयी है, हार्दिक बधाई ।

Comment by santosh khirwadkar on July 24, 2018 at 4:04pm

शुक्रिया आ . आरिफ़ साहब!!!

Comment by Mohammed Arif on July 24, 2018 at 11:53am

आदरणीय संतोष जी आदाब,

                        बहुत दिनों के बाद एक रोमाण्टिक अंदाज़ की ग़ज़ल पढ़ने को मिली । हर शे'र उम्दा । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service