क्या बरखा जब कृषि सुखानी।
ना जाने कब धरती हिल जानी।।
सूख न जाए आंखों का पानी।,
सपने हो गए अच्छे दिन,
याद आ रही नानी.
अबहूँ न आए, कब आएंगे
या करते प्रतीक्षा खप जाएँगे?
इन्तजार करते करते, हो गई कितनी देर
कब आएँगे पता नहीं, कैसे दिनन के फेर?
रामराज सपना हुआ, वादे अभी हैं बाकी
कह अमृत अब पानी भी, नहीं पिलावे साकी!
अब तक तो रखी सब ने, इस सिक्के की टेक
चलनी जितनी चली चवन्नी, फेंक…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on June 4, 2018 at 5:00pm — No Comments
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