विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून: क्या हम आप इसमें कहीं शामिल हैं? इस वर्ष खाद्यान्न की झूठन छोड़ने और संरक्षण न करने से होती बर्बादी को रोकने पर दृष्टि है.ध्येय नारा है: सोचो, खाओ, बचाओ.
भारत में शादी समरोहों में वीभत्स बर्बादी के अलावा भी संपन्न घरों में मेहमान तो मेहमान, पारिवारिक सदस्यों द्वारा भी भोजन की बर्बादी एक गरिमा माना जाता है. इस दिन को मानाने का हमारे यहाँ सम्प्रति चलनः मस्तिष्क उद्वेलन सत्रों द्वारा सरकारी संस्थाओं में आयोजन. पर क्या जन साधारण की कोई सार्थक भागीदारी सुनिश्चित हो सकती है? तकनीकी वाग्जाल से बाहर क्या ये दिन आ पायेगा? इस विपदा को वि.प.दि. (विश्व पर्यावरण दिवस) तक की प्रक्रिया की अभिव्यक्ति की चेष्टा प्रस्तुतु है.
पर्यावरण की विस्फोटक स्थिति पर
एक विशेषज्ञ का विश्लेषण सुना.
और अपना माथा धुना.
प्रदूषण की विषमता जान
बढ़ गई मेरी धुकधुकी.
बुद्धिजीवी ले रहे थाह
जन जन की सुध बुध की
चेष्टाएं प्रबल, प्रलापी
विभीषिकाओं की सीमा नापी.
प्रदूषण पर 10 मिनिट भाषण दे
मिटाने थकान अपने मुंह की
एक विशेषज्ञ ने तुरंत हो सजग
पूरे 20 मिनिट सिगरेटें फूंकी
पढ़ा लिखा प्रतिभा सम्पन्न समाज
एक पर्यावरण बनाचुका
उसी की जहरीली हवा में ले सांस
प्रदूषित जल
अनपढ़ ग्रामीण पी रहा है।
चेतावनी के तीर विस्मित हो झेलता,
नारकीय जीवन जी रहा है।
बुद्धिजीवी दायित्व बोध
मस्तिष्क उद्वेलन तक सीमित।
निस्सहाय निर्बोधों के
दायित्व अपरिमित।
वो अपने ही नहीं, हमारे भी बोझ ढो रहे हैं।
संसाधन, बीज, मिले न मिले,
पेट काट,अकाल के गाल में फसलें बो रहे हैं।
सदियों से मरुधरा उनके श्रमजल से अभिषिक्त है।
और हम संसाधन दोहन, वहनीयता वाक्मोह में लिप्त हैं।।
मस्तिष्क उद्वेलन में भिड़ा दें
कितनी ही खोपड़ियां
कोई बताए, संवरेंगी,
या खड़ी रह पाएंगी
कितने गरीबों की झोंपड़ियां?
प्रकृतिचक्र, नियति, खतरा हम बखान रहे
अवह्रास-वर्णन-अनुसंधान,
बन चुका धंधा
ढूंढे से कितने मिलेंगे बताए कोई
किसान के साथ जो मिलाए
कंधे से कंधा?
Comment
उद्वेलित करती रचना!पर्यावरण दिवश पर बहुत ही उपयुक्त!सादर बधाई!
सभी सुधी टिप्पणीकर्ताओं को उनकी सारगर्भित प्रितिक्रियाओं हेतु आभार. कुछ समय के लिए नियमित online रहना सम्भव न होगा अतः सभी को अभिज्ञापित नहीं कर पाउँगा. कसक हर बार नहीं उठती, पर जब उठती है तो तार तार कर देती है, तभी कुछ टूटा फूटा निर्झरित होता है.....
बहुत ही सुन्दर आदरणीय/// व्यंग के साथ साथ उपदेस देती रचना ///हार्दिक बधाई
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर जी वाह
बधाई हो आपको इस सार्थक सृजन हेतु सादर
बहुत महत्वपूर्ण सन्देश देती सुन्दर अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री सुरेन्द्र वर्मा जी
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
पर्यावरण दिवस पर बढ़िया विश्लेष्ण किया आपने आदरणीय सुरेन्द्र जी!
पढ़ा लिखा प्रतिभा सम्पन्न समाज
एक पर्यावरण बनाचुका
उसी की जहरीली हवा में ले सांस
प्रदूषित जल
अनपढ़ ग्रामीण पी रहा है।
चेतावनी के तीर विस्मित हो झेलता,
नारकीय जीवन जी रहा है।................वाह! आदरणीय सुरेंदर वर्मा जी विश्व पर्यावरण दिवस पर बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. सभी को जागरूक होना जरूरी है.सादर बधाई स्वीकारें.
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