बिक जाता है चन्द रूपये की खातिर अख़बारों में।
बहुत तलाशा मिला नहीं पर सच आख़िर अख़बारों में।।
बेंच रहे हैं ज़हर मिलाकर भोजन में बाज़ारों में।
विज्ञापन की बाढ़ आ गयी पैसे से अख़बारों में।।
पेड़ बचाओ करो सफाई ऐसे कैसे संभव है।
भौतिकता का नशा बेंचते रोज़ रोज़ अख़बारों में।।
चोरी और अपराध रुकेगा किस तरहा से कहिये ना।
महंगी वाली कार-मोबाइल दिखते जब अख़बारों में।।
लोभ-मोह का त्याग सिखाते गुरुकुल सारे गायब हैं।
मैकाले की नीति बाँचते विद्यालय…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 30, 2015 at 10:00pm — 4 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 27, 2015 at 10:30pm — 11 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 26, 2015 at 9:52pm — 12 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 26, 2015 at 12:11pm — 11 Comments
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