सत्य सुनावै मनई कोउ
भरि साँसैं जमुहाईं
झूठि जहाँ पर चलि रहा
हुइ चैतन मुसुकाहिं
बहुतै मजा मिलै जहाँ
चुगली खावैं लोग
नमक, खटाई, मिरचि जब
चटकि , तबहिं मन मोद
का कलजुग ना दिखावै
सत्पथ धरहि जो पाँव
तपति मरूथल रेत जसि
दीखै कहूँ न छाँव
मौनी अब तौ साधिहौं
वाहै मा आनन्द
ई सांसारिक जालि मा
उरझै कवनेउ मंद
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on July 8, 2020 at 6:28pm — 3 Comments
पैसों से क्या जान को
हम पाएगें तोल ?
सदा - सदा को बुझ गए
जब चिराग़ अनमोल
किन-किन के थे वरद हस्त
जो पनपी यह खोट
खोज-खोज उनकी करें
क्यों ना जड़ पर चोट ?
इस बढ़ती विष बेल पर
यदि ना डली…
ContinueAdded by Usha Awasthi on July 4, 2020 at 5:50pm — 6 Comments
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