अटूट बंधन
कल रात भर आसमान रोता रहा
धरती के कंधे पर सिर रख कर
इतना फूट फूट कर रोया कि
धरती का तन मन
सब भीगने गया
पेड़ पौधे और पत्ते भी
इसके साक्षी बने
उसके दर्द का एक एक कतरा
कभी पेडो़ं से कभी पत्तों में से
टप-टप धरती पर गिरता रहा
धरती भी जतन से उन्हें
समेटती रही,सहेजती रही
और..
दर्द बाँट्ने की कोशिश करती रही
ताकि उसे कुछ राहत मिल जाए
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महेश्वरी…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on July 16, 2014 at 6:34pm — 8 Comments
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