यूँ कभी कभी मन में उठती है तरंग
बार-बार कहता कुछ विचलित मन
मस्तिष्क पटल पर छा जाते वो साज सभी
कानों में आती गुंजन की आवाज़ कभी
दिखती है आँखों में बिजली सी चमक कहीं
लगता है खोया गया सर्वस्व यहीं !
देती है भाँवर सी फेरी वो कभी ख्यालों में मेरे
न जाने क्या पूंछा करती वो मुझसे साँझ सबेरे
बालों को लहरा के हवा आके छू जाती है मुझको
अपलक वो देखा करती पता नहीं क्यों खुद को
खिल गई कली चपला सी…
Added by Raj Tomar on July 15, 2012 at 10:00pm — 5 Comments
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