रात के हुस्न पर थी टँकी चाँदनी
पर घटाओं से ही मैं उलझता रहा
चाँद पाने की कोशिश नहीं थी मगर
चाँद छूने को ही मैं मचलता रहा
सिक्त आँचल हिलाती रही रात भर
फिर भी गुमसुम हवा ही बही रात भर
कुछ सितारे ही बस झिलमिलाते रहे
धैर्य की ही परीक्षा चली रात भर
प्रीति के दर्द को भी दबाये हुए
घूँट आँसू के ही मैं निगलता रहा
चाँद आया नहीं देर तक सामने
स्याह बादल लगे चादरें…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 16, 2024 at 5:43pm — 6 Comments
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