कह मुकरने की कुछ कोशिशें...
(1)
वो डोले दुनिया मुसकाए।
पवन बसन्ती झूमे गाये।
बिन उसके जग खाली खाली,
क्या सखी साजन? ना हरियाली।
…
ContinueAdded by Sanjay Mishra 'Habib' on July 31, 2012 at 3:30pm — 5 Comments
छोड़ देना मत मुझे मेरे खुदा मझधार में.
सर झुकाए हूँ खडा मैं तेरे ही दरबार में.
राह में बिकते खड़े हैं मुल्क के सब रहनुमा,
रोज ही तो देखते हैं चित्र हम अखबार में.
देश की गलियाँ जनाना आबरू की कब्रगाह,
इक इशारा है बहुत क्या क्या कहें…
ContinueAdded by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 7:00pm — 7 Comments
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