रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,
ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।
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हम समता करना सीख गए सुख और दुख के हर रंग में,…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 27, 2012 at 11:30am — 12 Comments
एक अलसाई सी सुबह थी, सब काम निबटा कर बस बैठी ही थी मैं मौसम का मिजाज लेने। कुछ अजीब मौसम था आज का, हल्की हल्की बारिश थी जैसे आसमान रो रहा हो हमेशा की तरह आज न जाने क्यो मन खुश नहीं था बारिश को देखकर, तभी मोबाइल की घंटी बजी, दीदी का फोन था ‘माँ नहीं रही’। सुनकर कलेजा मुह को आने को था दिल धक्क, धड़कने रुकने को बेचैन, कभी कभी हम ज़ीने को कितने मजबूर हो जाते है जबकि ज़ीने की सब इच्छाएँ मर जाती है। मेरी माँ मेरी दोस्त मेरी गुरु एक पल में मेरे कितने ही रिश्ते खतम हो गए और मैं ज़िंदा उसके बगैर…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 17, 2012 at 3:30pm — 12 Comments
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