अच्छा !!!!
तो प्रेम था वो !!!
जबकि केंद्रित था लहू का आत्मिक तत्व
पलायन स्वीकार चुकी भ्रमित एड़ियों में !
किन्तु -
एक भी लकीर न उभरी मंदिर की सीढियों पर !
एड़ियों से रिस गईं रक्ताभ संवेदनाएं !
भिखमंगे के खाली हांथों की तरह शुन्य रहा मष्तिष्क !
हृदय में उपजी लिंगीय कठोरता के सापेक्ष
हास्यास्पद था-
तोड़ दी गई मूर्ति से साथ विलाप !
विसर्जित द्रव का वाष्पीकृत परिणाम थे आँसू…
ContinueAdded by Arun Sri on August 5, 2013 at 11:30am — 15 Comments
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