दोहा त्रयी. . . . वेदना
धीरे-धीरे ढह गए, रिश्तों के सब दुर्ग ।
बिखरे घर को देखते, घर के बड़े बुजुर्ग ।।
विगत काल की वेदना, देती है संताप ।
तनहा आँखों का भला , सुनता कौन विलाप ।।
बहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।
झुर्री में रुक रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।
सुशील सरना / 28-8-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 28, 2024 at 2:00pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . प्रेम
प्रेम चेतना सूक्ष्म की, प्रेम प्रखर आलोक ।
प्रेम पृष्ठ है स्वप्न का, प्रेम न बदले मोक । ।
( मोक = केंचुल )
प्रेम स्वप्न परिधान है, प्रेम श्वांस की शान ।
प्रेम अमर इस भाव के , मिटते नहीं निशान ।।
प्रेम न माने जीत को, प्रेम न माने हार ।
जीवन देता प्रेम को, एक शब्द स्वीकार ।।
प्रेम सदा निष्काम का , मिले सुखद परिणाम ।
दूषित करती वासना, इसके रूप तमाम ।।
अटल सत्य संसार का, अविनाशी है प्रेम ।
भाव…
Added by Sushil Sarna on August 25, 2024 at 3:30pm — No Comments
दोहा पंचक ..... असली -नकली
हंस भेस में आजकल, कौआ बाँटे ज्ञान ।
पीतल सोना एक से, कैसे हो पहचान ।।
अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।
कौन किसी के वास्ते, आज माँगता खैर ।।
अच्छी लगती झूठ की, वर्तमान में छाँव ।
चैन मगर मिलता वहाँ, जहाँ सत्य की ठाँव ।।
धोखा देती है बहुत, अधरों की मुस्कान ।
मन में क्या है भेद कब, होती यह पहचान ।।
रिश्तों में बुझता नहीं, अब नफरत का दीप ।
दुर्गंधित जल में नहीं, मिलते मुक्ता सीप…
Added by Sushil Sarna on August 23, 2024 at 4:41pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . . बारिश का कह्र
अविरल होती बारिशें, अब देती हैं घाव ।
बारिश में घर बह गए, शेष नयन में स्राव ।।
निर्मम बारिश ने किया, निर्धन का वो हाल ।
झोपड़ की छत उड़ गई, जीवन बना सवाल ।।
अस्त- व्यस्त जीवन हुआ, बारिश से चहुँ ओर ।
जन जीवन नुकसान से, भीगे मन के छोर ।।
वर्षा का तांडव हुआ, बहे कई प्रासाद ।
शेष बचे अवशेष अब, बने भयंकर याद ।।
कैसे मंजर दे गया, बरसाती तूफान ।
जमींदोज पल में हुए , पक्के बड़े मकान…
Added by Sushil Sarna on August 22, 2024 at 3:00pm — No Comments
दोहा त्रयी. . . रंग
दृष्टिहीन की दृष्टि में, रंगहीन सब रंग ।
सुख-दुख की अनुभूतियाँ, चलती उसके संग । ।
रंगों को मत दीजिए, दृष्टि भरम का दोष ।
अन्तस के हर रंग का, मन करता उद्घोष ।।
खुली पलक में झूठ के, दिखते अनगिन रंग ।
एक रंग रहता सदा, सच्चाई के संग ।।
सुशील सरना / 20-8-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 20, 2024 at 4:33pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . . विविध
जीवन के अनुकूल कब, होते हैं हालात ।
अनचाहे मिलते सदा, जीवन में आघात ।।
अपना जिसको मानते, वो देता आघात ।
पल- पल बदले केंचुली ,यह आदम की जात ।।
कहने को हमदर्द सब, पूछें अपना हाल ।
वक्त पड़े तो छोड़ते, हाथों को तत्काल ।।
इच्छा के अनुरूप कब, जीवन चलता चाल ।
सौम्य वेश में पूछता, उत्तर रोज सवाल ।।
मीलों चलते साथ में, दे हाथों में हाथ ।
अनबन थोड़ी क्या हुई, तोड़ा जीवन साथ ।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 16, 2024 at 8:37pm — 4 Comments
दोहा पंचक. . . . . परिवार
साँझे चूल्हों के नहीं , दिखते अब परिवार ।
रिश्तों में अब स्वार्थ की, खड़ी हुई दीवार ।।
पृथक- पृथक चूल्हे हुए, पृथक हुए परिवार ।
आँगन से ओझल हुए, खुशियों के त्यौहार ।
टुकड़े -टुकड़े हो गए, अब साँझे परिवार ।
इंतजार में बुझ गए, चूल्हों के अंगार ।।
दीवारों में खो गए, परिवारों के प्यार ।
कहाँ गए वो कहकहे, कहाँ गए विस्तार ।।
सूना- सूना घर लगे, आँगन लगे उदास ।
मन को कुछ भाता नहीं, रहे न अपने पास …
Added by Sushil Sarna on August 9, 2024 at 9:59pm — 4 Comments
दोहा पंचक. . . . . ख्वाब(नुक्ते रहित सृजन )
कातिल उसकी हर अदा, कमसिन उसके ख्वाब ।
आतिश बन कर आ गया, भीगा हुआ शबाब ।।
रुक -रुक कर रुख पर गिरी, सावन की बरसात ।
छुप-छुप कर करती रही, नजर जिस्म से बात ।।
बार - बार गिरती रही, उड़ती हुई नकाब ।
प्यासी नजरों देखतीं, जैसे हसीन ख्वाब ।।
खड़ा रहा बरसात में , भीगा एक शबाब ।
रह - रह के होती रही, आशिक नज़र खराब ।।
भीगी बाला से हुआ, नजरों का संवाद ।
ख्वाबों से वो कर गई, इस दिल को आबाद…
Added by Sushil Sarna on August 4, 2024 at 3:46pm — No Comments
दोहा सप्तक. . . . . मोबाइल
मोबाइल ने कर दिया, सचमुच बेड़ा गर्क ।
निजता पर देने लगे, युवा अनेकों तर्क । ।
मोबाइल के जाल में, उलझ गया संसार ।
सच्चा रिश्ता अब यही , बाकी सब बेकार ।।
संवादों का बन गया, मोबाइल संसार ।
सांकेतिक रिश्ते हुए, बौना सच्चा प्यार ।।
प्यार जताने के सभी, बदल गए हालात ।
मोबाइल पर साजना , दर्शन दे साक्षात ।
मोबाइल पर कीजिए, चाहे घंटों बात ।
पत्नी की मत भूलना,पर लाना सौगात ।।
मोबाइल के भूत ने, रिश्ते किये…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 3, 2024 at 8:29pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . . तूफान
चार कदम पर जिंदगी, बैठी थी चुपचाप ।
बारिश के संहार पर,करती बहुत विलाप ।।
रौद्र रूप बरसात का, लील गया सुख - चैन ।
रोते- रोते दिन कटा, रोते -रोते रैन ।।
कच्चे पक्के झोंपड़े , बारिश गई समेट ।
जन - जीवन तूफान के, चढ़ा वेग की भेंट ।।
मंजर वो तूफान का, कैसे करूँ बयान ।
खौफ मौत का कर गया, आँखों को वीरान ।।
उड़ जाऐंगे होश जब, देखोगे तस्वीर ।
देख बाढ़ का दृश्य वो , गया कलेजा चीर ।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 2, 2024 at 9:19pm — 4 Comments
दोहा सप्तक . . . . सावन
सावन में अच्छी नहीं, आपस की तकरार ।
प्यार जताने के लिए, मौसम हैं दो चार ।।
बरसे मेघा झूम कर, खूब हुई बरसात ।
बाहुबंध में बीत गई, भीगी-भीगी रात ।।
गगरी छलकी नैन की, जब बरसी बरसात।
कैसे बीती क्या कहूँ, बिन साजन के रात।।
थोड़े से जागे हुए, थोड़े सोये नैन ।
हर करवट पर धड़कनें, रहती हैं बैचैन ।।
बिन साजन सूनी लगे, सावन वाली रात ।
सुधि सागर ऐसे बहे, जैसे बहे प्रपात ।।
जितनी बरसें…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 1, 2024 at 3:34pm — No Comments
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