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रोने का तुम नाम न लेना रीत बनाओ हँसने की
रोने धोने में क्या रक्खा होड़ लगाओ हँसने की /1
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माना पाँव धँसे हैं कब से पार उतरना मुश्किल है
पीड़ाओं के इस दलदल में गंग बहाओ हँसने की /2
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परपीड़ा में सुख मत खोजो ये पथ घेरे वाला है
दूर तलक जो ले जाती है राह बताओ हँसने की /3
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पोंछो आँसू बाढ़ में इसकी खुशियों के घर बहते हैं
निर्जन में भी यारो बस्ती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2015 at 10:30am — 12 Comments
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माना केवल रात ढली है हमको उनका दीद हुए दर्शन
पर लगता है सदियाँ गुजरी अपने घर में ईद हुए /1
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हमने तो कोशिश की वो भी हमसे जुड़ते यार मगर
रिश्तों के पुल बरसों पहले उनसे ही तरदीद हुए /2 रद्द करना / तोडना
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भीड़ जुटाई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 10:54am — 19 Comments
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