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रोने का तुम नाम न लेना रीत बनाओ हँसने की
रोने धोने में क्या रक्खा होड़ लगाओ हँसने की /1
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माना पाँव धँसे हैं कब से पार उतरना मुश्किल है
पीड़ाओं के इस दलदल में गंग बहाओ हँसने की /2
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परपीड़ा में सुख मत खोजो ये पथ घेरे वाला है
दूर तलक जो ले जाती है राह बताओ हँसने की /3
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पोंछो आँसू बाढ़ में इसकी खुशियों के घर बहते हैं
निर्जन में भी यारो बस्ती रोज बसाओ हँसने की /4
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सिर्फ हँसी ही यार खुदा की सबसे अच्छी नेमत है
घाव लगे हों दिल पर कितने कश्में खाओ हँसने की /5
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रचना मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आ० राजेश दी , उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार . त्रुटि की और ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ० भाई विजय जी , अपनी उपस्थिति से ग़ज़ल का मन बढ़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद .
बहुत बढ़िया सार्थक सन्देश देती ग़ज़ल हर अशआर प्रभाव शाली हुआ लक्ष्मण धामी भैया दाद कुबूलें ,हाँ अंतिम मिसरे में कसमें कर लें टंकण मिस्टेक आ गई है |
आपने गज़ल बढ़िया लिखी है। बधाई।
आ० भाई समर जी, उपस्थिति और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ० भाई मिथिलेश जी , आपकी उपस्थिति हमेशा उत्साहवर्धक होती है . स्नेह बनाये रखे l
आ० भाई श्री सुनील जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर, बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
सादर
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