दोहे
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वो तो बढ़चढ़ बाँटते, नफरत जिसका नाम
जन्नत में सद्भावना, शेष वतन का काम।१।
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वैसे तो हम सब रहे, विविध रंग के फूल
किन्तु सूख अब हो गये, जैसे तीखे शूल।२।
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पड़े जंग आतंक की, निसदिन जिन पर मार
उन्हें जिन्दगी फिर लगे, बोलो क्यों ना भार।३।
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तन से तो अब देश में, बिलय हुआ कश्मीर
मन से भी जब हो बिलय, बदलेगी तस्वीर।४।
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बिस्थापित थे जो हुये, समझो उनकी पीर
जा पायें निज ठाॅ॑व वो, कश्मीरी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2019 at 6:55am — No Comments
गाँव के दोहे
संगत में जब से पड़ा, सभ्य नगर की गाँव
अपना घर वो त्याग कर, चला गैर के ठाँव।१।
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मिलना जुलना बतकही, पनघट पर थी खूब
सब अपनापन मर गया, मोबाइल में डूब।२।
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बिछी सड़क कंक्रीट की, झुलसे जिसमें पाँव
पीपल कटकर गुम हुये, कौन करे फिर छाँव।३।
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सेज माल के वास्ते, कटे खेत खलिहान
जिससे लोगों मिट गयी, गाँवों की पहचान।४।
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सड़क योजना खा गयी, पगडंडी हर ओर
पहले सी होती नहीं, अब गाँवों की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2019 at 8:36am — 10 Comments
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