हाँ
मैं पिघला दूँगा अपने शस्त्र
तुम्हारी पायल के लिए
और धरती का सौभाग्य रहे तुम्हारे पाँव
शोभा बनेंगे
किसी आक्रमणकारी राजा के दरबार की
फर्श पर एक विद्रोही कवि का खून बिखरा होगा !
हाँ
मैं लिखूंगा प्रेम कविताएँ
किन्तु ठहरो तनिक
पहले लिख लूँ एक मातमी गीत
अपने अजन्मे बच्चे के लिए
तुम्हारी हिचकियों की लय पर
बहुत छोटी होती है सिसकारियों की उम्र
हाँ
मैं बुनूँगा…
ContinueAdded by Arun Sri on September 21, 2013 at 11:00am — 15 Comments
सुनो ,
व्यर्थ गई तुम्हारी आराधना !
अर्घ्य से भला पत्थर नम हो सके कभी ?
बजबजाती नालियों में पवित्र जल सड़ गया आखिर !
मैं देव न हुआ !
सुनो ,
प्रेम पानी जैसा है तुम्हारे लिए !
तुम्हारा मछ्लीपन प्रेम की परिभाषा नहीं जानता !
मैं ध्वनियों का क्रम समझता हूँ प्रेम को !
तुम्हारी कल्पना से परे है झील का सूख जाना !
मेरे गीतों में पानी बिना मर जाती है मछली !
(मैं अगला गीत “अनुकूलन” पर लिखूंगा !)
सुनो…
ContinueAdded by Arun Sri on September 10, 2013 at 11:30am — 23 Comments
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